Karpoori Thakur Bharat Ratna: दोस्तों मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया है इस बात का ऐलान होते ही श्रेय लेने देने की होड़ भी मच गई. पुरस्कार देने वाले से ज़्यादा माँगने वालों में श्रेय लेने ही होड़ मच गई बधाइयों का तांता लगना था. प्रधानमंत्री मोदी ने बधाई दी तो नीतीश कुमार ने अपनी मांग की याद दिलाते हुए पीएम का आभार जताया, उसके बाद तेजस्वी यादव ने भी अपनी पुरानी पोस्ट दोबारा शेयर कर याद दिलाया कि उनकी पार्टी ने ये मांग पहले ही की थी. इसके बाद बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का बधाई संदेश तो और भी दिलचस्प था. उनके अंतिम समय में लालू ने उनके साथ क्या किया था वो सारा बिहार जानता है और आज ये लोग कह रहे है की इनकी वजह से भारत रत्न मिला है
बिना मांग के दिया भारत रत्न!
दोस्तों गौर करने वाली बात तो ये है ,,कि कर्पूरी ठाकुर का निधन सन् 1988 में हो गया था. तब से लेकर अब तक करीब 35 साल बीत गये. उनकी समाजवादी वैचारिक विरासत की बुनियाद पर बिहार में कई सियासी दिग्गजों ने मुखर राजनीति की और सत्ता पर काबिज भी हुये. तब न तो लालू को याद आई ओर न ही काँग्रेस को और अब जब भारत रत्न मिला तो लालू प्रसाद ने सवाल उठा दिया कि उनके राजनीतिक और वैचारिक गुरु कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था.
दोस्तों अब जब 34 साल बाद भारत रत्न दिया तो इसका श्रेय जिसने मांगा उसको दिया जाए या जिसने दिया उसको यानि की मोदी सरकार को मेरे हिसाब से तो इसका श्रेय लोकसभा चुनाव को मिलना चाहिए
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक है मोदी जी ने दो दिनों के अंदर बैक टू बैक कमंडल और मंडल की राजनीति की है पहले कमंडल, फिर मंडल.. की राजनीति कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने के फैसले से केंद्र सरकार ने बिहार में पिछले 30 साल से पिछड़े और अति पिछड़ों की यानी ‘मंडल’ की राजनीति करने वाले आरजेडी प्रमुख लालू यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने जबरदस्त चुनौती पेश कर दी है
क्या बिहार की राजनीति में बड़ी काट?
दोस्तों प्रधानमंत्री मोदी ने कैसे दो दिनों के अंदर कमंडल और मंडल की राजनीति करके अपने विरोधियों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है, यह चर्चा का विषय बन गया है. दरअसल, 22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर का उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने सभी नियमों का पालन करते हुए धार्मिक अनुष्ठान किए उसके जरिए कमंडल यानी अगड़ी जातियों को साधने की रणनीति जनभावना को अपने पक्ष में करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में उमड़ रही भीड़, रामलला को लेकर आस्था का सैलाब देख ये कहा जा सकता है कि बीजेपी को आने वाले चुनावों में इसका लाभ मिल सकता है. पीएम मोदी देश की जनभावना, जनता की इच्छा और आकांक्षा समझते हैं. वह सनातन आस्था के दांव से हिंदू वोट बैंक साधने में किस कदर कामयाब रहते हैं,, यह तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे लेकिन अब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया जाना कमंडल के बाद अब मंडल को बैलेंस करने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.
बिहार की राजनीति भारत रत्न या चुनाव रत्न !
दोस्तों बिहार के ओबीसी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अब तक लालू यादव और नीतीश कुमार की पार्टियों के ही साथ रहा है बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े आने आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने के नीतीश के दांव से ऐसी चर्चा शुरू हो गई थी कि इसका फायदा महागठबंधन को 2024 के चुनाव में मिल सकता है. मगर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के ऐलान से नीतीश और लालू के मंडल वोट बैंक को साधने की कोशिश की हवा निकलती नजर आ रही है
गौरतलब है कि कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, उन्होंने प्रदेश में पिछड़े और अति पिछड़ों के विकास के लिए आवाज उठाई, कदम उठाए. 1990 के दशक में लालू और नीतीश ने भी कर्पूरी ठाकुर के इसी फार्मूले पर काम करते हुए पिछड़ी जाति के वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत की और उसी के सहारे अब तक अपनी राजनीति को चमकाते आ रहे हैं.
लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरीके से दो दिनों के अंदर कमंडल और मंडल की राजनीति एक साथ कर दी है, उसे लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की व्यापक रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है दोस्तों क्या कोई राजनेता कर्पूरी ठाकुर बनने को तैयार है या देश की वर्तमान राजनीति कर्पूरी के आदर्शों को जीने का साहस उठा पाएगी ??? आपकी इस मण्डल राजनीति पर क्या राय है हमे comment बॉक्स में comment कर जरूर बताएँ