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Women Reservation Bill: 27 साल बाद महिलाओं को हक का मौका , जानिए बिल की की खास बातें

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Women Reservation Bill: दोस्तों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली,, केंद्र सरकार ने संसद में 5 दिवसीय विशेष सत्र की शुरूआत करा दी है. इस महीने की शुरूआत से ही,, लोगों के मन में ये उत्सुकता थी,, कि सरकार विशेष सत्र क्यों बुला रही है…18 से 22 सितंबर के बीच आखिर क्या होने वाला है, आज सरकार ने विशेष सत्र का सरप्राइज दिया है

दोस्तों देश में महिलाओं को जनप्रतिनिधत्व का समानुपातिक अवसर देने के लिए कई बार पहल की गयी. 27 साल से यह मुद्दा उठता रहा है. राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणापत्रों में इसे लेकर वादे भी किये., संसद के पटल पर भी यह विषय आता रहा,,. राज्यसभा में इसे लेकर बिल भी आया,, लेकिन लोकसभा में यह पारित नहीं हो सका. सोमवार को मोदी मंत्रिमंडल ने बड़ा फैसला किया और महिला आरक्षण विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी.जी हाँ , अब इसे लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाना है. यह महिलाओं को अधिकार देने की दिशा में एक बड़ा कदम है

केंद्र सरकार की ओर से आठ विधेयक पेश होंगे

संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र सोमवार से शुरू हो गया. संसद के इस विशेष सत्र के दौरान ,,केंद्र सरकार की ओर से आठ विधेयक पेश किये जाने हैं. ,,इस बीच चर्चा है कि संसद के विशेष सत्र में ही ,,मोदी सरकार महिला आरक्षण विधेयक ला सकती है., संसद के विशेष सत्र से पहले ,,रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में ,,विपक्ष के ज्यादातर नेताओं ने महिला आरक्षण बिल लाने की वकालत की थी,,. जानकारी के मुताबिक,, मोदी सरकार की ओर से ,,आज महिला आरक्षण बिल पेश किया जा सकता है.

1996 से संसद में लंबित है महिला आरक्षण बिल

दोस्तों पहली बार साल 1996 में,, महिला आरक्षण बिल को एच.डी. देवगौड़ा के ,,नेतृत्व वाली सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में ,,संसद में पेश किया था। ,,लेकिन देवगौड़ा की सरकार बहुमत से अल्पमत की ओर आ गई थी,, जिस कारण यह विधेयक पास नहीं कराया जा सका।,,इसके बाद साल 1998 में ,,अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने ,,लोकसभा में फिर से यह विधेयक पेश किया। ,,लेकिन गठबंधन की सरकार में अलग अलग विचारधाराओं की बहुलता के चलते ,,इस विधेयक को भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

नौ मई, 2010 को राज्यसभा से पारित

साल 1999, 2002 और 2003 में इस विधेयक को दोबारा लाया गया ,,लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।,,फिर आया साल 2008 जब मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने ,,लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण से जुड़ा ,,108वां संविधान संशोधन विधेयक संसद के ,,उच्च सदन राज्यसभा में पेश किया ,,जिसके दो साल बाद साल 2010 में,, तमाम तरह के विरोधों के बावजूद ,,यह विधेयक राज्यसभा में पारित करा दिया गया। ,,लेकिन लोकसभा में सरकार के पास ,,बहुमत होने के बावजूद यह पारित न हो सका।

साल 2014 से लेकर,, अब तक बीजेपी दो बार सत्ता पर भारी बहुमत से काबिज़ हुई है,, लेकिन ये विधेयक उसकी प्राथमिकता में कभी नज़र नहीं आया। ,,ऐसा लगता है मानो,, ये सरकारी पन्नों में कहीं खो गया है,, जिसकी ज़रूरत पुरुषप्रधान राजनीति में महसूस नहीं की गई। ,,महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किए जाने के कारण ,,यह विधेयक अभी भी जीवित है ,,जिसमें मौजूदा केंद्र सरकार चाहे तो ,,बहुत ही आसानी से इसे पास करा सकती है।

सत्ता पर भारी बहुमत से काबिज़ बीजेपी, फिर भी पास नहीं हुआ बिल

बीते साल 2022 में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की,, सांसद डॉक्टर फौज़िया ख़ान ने ,,संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ाने यानी राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने को लेकर ,,केंद्र की मोदी सरकार से सवाल पूछा था। ,,डॉक्टर फौज़िया ख़ान शासन के अलग-अलग स्तरों पर,, महिलाओं के प्रतिनिधित्व की जानकारी चाहती थीं।, मोटे तौर पर आसान भाषा में ,,महिला रिज़र्वेशन बिल के मुद्दे पर रोशनी चाहती थीं,, लेकिन हर बार कि तरह इस बार भी ,,इस मामले पर सरकार का जवाब निराशाजनक ही नहीं ,,अजीब भी रहा था।, केंद्र की ओर से कानून मंत्री किरन रिजिजू ने ,,अपने आधिकारिक जवाब में लिखा,, ‘सूचना एकत्रित की जा रही है और सदन के पटल पर रख दी जाएगी।’

जानकारी के मुताबिक,, भारतीय संसद के दोनों सदनों में कुल मिला कर,, 788 सदस्य हैं जिनमें से सिर्फ 103 महिलाएं हैं,, यानी सिर्फ 13 प्रतिशत।, राज्य सभा के 245 सदस्यों में से सिर्फ 25 महिलाएं हैं,, यानी लगभग 10 प्रतिशत। ,,लोक सभा में 543 सदस्यों में से सिर्फ 78 महिलाएं हैं,, यानी 14 प्रतिशत। ,केंद्रीय सरकार में भी ,,सिर्फ 14 प्रतिशत मंत्री महिलाएं हैं।, विधान सभाओं में तो स्थिति और बुरी है। ,,एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ,,देश में 4,120 विधायकों में से सिर्फ,, नौ प्रतिशत विधायक महिलाएं हैं। पार्टियां, महिलाओं को चुनाव लड़ने का अवसर भी कम देती हैं।

बीजेपी पर कथनी-करनी में फर्क का आरोप

गौरतलब है कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक,, 2002 से 2019 तक,, लोक सभा चुनावों में लड़ने वाले उम्मीदवारों में से 93 प्रतिशत उम्मीदवार पुरुष थे।, इसी अवधि में विधान सभा चुनावों में यह आंकड़ा 92 प्रतिशत था। ,,यानी महिलाएं दूर-दूर तक बराबरी के अंकों से दूर ही नज़र आती हैं।, कल्पना कीजिए सिर्फ 33 फ़ीसद आरक्षण के लिए ,,इसे संसद में सहयोग नहीं मिल पा रहा है ,,फिर महिलाओं से जुड़े बाकी मामलों में सरकार से क्या उम्मीद रखी जा सकती है?, इस बात की गंभीरता को इससे भी समझा जा सकता है कि ,,2014 चुनावों से पहले भारी भरकम वायदों की सूची को,, घोषणा पत्र में शामिल करने वाली केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी की सरकार ने ,,महिला आरक्षण बिल को भी पारित करने का वादा किया था ,,लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यह मुद्दा ,,अपने संकल्प पत्र में शामिल करना ज़रूरी तक नहीं समझा। ,,इसी कारण बीजेपी पर अक्सर ,,कथनी और करनी में फर्क का आरोप लगता है।

क्या है बिल में प्रावधान

महिला आरक्षण विधेयक में ,,लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या,, एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है,,. विधेयक में 33 फीसदी कोटा के भीतर एससी,, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए,, उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है., विधेयक में प्रस्तावित है कि,, प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए., आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के,, विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं.

बिल के समर्थन-विरोध में अपने-अपने तर्क

1996 के महिला आरक्षण बिल की जांच करने वाली रिपोर्ट,, में सिफारिश की गयी कि,, ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति देने के लिए संविधान में संशोधन होने के बाद,, अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए., यह भी सिफारिश की,, कि आरक्षण को राज्यसभा और विधान परिषदों तक बढ़ाया जाये., इनमें से किसी भी सिफारिश को विधेयक में शामिल नहीं किया गया है,,. महिला आरक्षण पर लोगों की अलग-अलग राय है,,. बिल के समर्थन मे कहा जाता है कि,, इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार आयेगा., पंचायतों पर हाल के कुछ अध्ययनों ने महिला सशक्तिकरण और संसाधनों के आवंटन पर ,,आरक्षण का सकारात्मक प्रभाव दिखाया है.

इस बिल के विरोध में तर्क दिये जाते हैं कि,, इससे महिलाओं की असमान स्थिति कायम बनी रहेगी ,,क्योंकि उन्हें योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने वाला नहीं माना जायेगा. , यह भी तर्क है कि ,,यह नीति चुनाव सुधार के बड़े मुद्दों जैसे राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र से,, ध्यान भटकाती है. संसद में सीटों का आरक्षण मतदाताओं की पसंद को,, महिला उम्मीदवारों तक सीमित कर देता है.

लेकिन दोस्तों ,,मेरे पॉइंट ऑफ व्यू से , इसमें एक ही समस्या है,, कहीं सारे बड़े नेताओं की पत्नियाँ और परिवार की सदस्य ही ,,सारी टिकट ना ले लें।,,क्योंकि पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण के बाद भी,, यही हुआ था। सरपंचों की पत्नियाँ ही सरपंच बनने लगीं।,,पार्टियाँ ऐसी महिलाओं को टिकट दें ,,जो बड़े राजनीतिक ख़ानदान से नहीं आतीं।

पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी

संविधान के अनुच्छेद 243डी ,,के माध्यम से ,,पंचायती राज संस्थाओं में ,,महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया,,. अनुच्छेद 243डी ने,, पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की. ,,चुनाव से भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या ,,और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में,, महिलाओं के लिए कम-से-कम एक तिहाई आरक्षण है,,. 21 राज्यों ने अपने-अपने राज्य में ,,पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है,,. ये राज्य आंध्र प्रदेश, असम,, बिहार,, छत्तीसगढ़,, गुजरात,, हरियाणा,, हिमाचल प्रदेश,, झारखंड,, कर्नाटक,, केरल,, मध्य प्रदेश,, महाराष्ट्र,, ओडिशा,, पंजाब,, राजस्थान,, सिक्किम,, तमिलनाडु,, तेलंगाना,, त्रिपुरा,, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल हैं

40 देशों में है महिलाओं के लिए कोटा

स्वीडन स्थित ,,इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस यानि IDEA के अनुसार,, लगभग 40 देशों में या तो ,,संवैधानिक संशोधन के माध्यम से,, या चुनावी कानूनों में बदलाव करके,, संसद में महिलाओं के लिए कोटा तय किया गया है,,. 50 से अधिक देशों में प्रमुख राजनीतिक दलों ने ,,स्वेच्छा से अपने स्वयं के कानून में ,,कोटा प्रावधान निर्धारित किये हैं.,

मोदी सरकार ने बनाई 2024 के चुनाव की रणनीति

मोदी सरकार द्वारा बुलाए गए विशेष सत्र को सरकार के लिए 2024 का चुनाव जीतने के लिए किसी बड़े एजेंडे को लाने के अंतिम अवसर के रूप में देखा जा रहा है जानकारों का मानना है कि सरकार इस सत्र में किसी बड़े कदम की घोषणा कर मतदाताओं को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर सकती है. बता दिया जाए कि नई संसद में सदस्यों के बैठने के लिए ज्यादा स्थान बनाया गया है. ऐसे में यह भी एक इशारा है कि सीटों को बढ़ाकर सदस्यों की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है. दोस्तों यदि ऐसा होता है तो प्रधानमंत्री अपने विशेष समर्थक वर्ग महिलाओं को अपने पाले में और ज्यादा मजबूती के साथ ला सकते हैं.

पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। कई राज्यों में वे पुरुषों के मुकाबले अधिक वोट डाल रही हैं।, प्रधानमंत्री ने स्वयं पिछले कुछ चुनावों में भाजपा की जीत का श्रेय महिलाओं को दिया था। ऐसे में महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत का आरक्षण देकर सरकार अपने वोट को और दुरुस्त करेगी। 2026 में सीमांकन होना है और लोकसभा की सीटें बढ़ेगी। नया संसद भवन इसके लिए तैयार है।आपकी इस बिल को लेकर क्या राय है ,हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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