Citizenship Amendment Act (CAA) : चुनाव से पहले CAA लागू करने का एलान क्यों?
Citizenship Amendment Act (CAA) : पूरे देश में विरोध प्रदर्शन होने वाले सीएए के मुद्दे को लेकर ऐसा बयान दिया जिससे हर कोई हैरान है। 7 दिनों के अंदर देश में लागू हो जाएगा CAA’, जी हां… ऐसा ही दावा किया है केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने। उन्होंने कहा है कि देश में अगले एक सप्ताह में नागरिक संशोधन अधिनियम लागू हो जाएगा।, इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि- मैं मंच से ये गारंटी दे रहा हूं कि अगले 7 दिनों में सिर्फ बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश में सीएए लागू होगा।
इससे पहले 27 दिसंबर को बंगाल दौरे पर गए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि सीएए लागू होने से कोई नहीं रोक सकता. इस बयान ने एक बार फिर से इस मुद्दे को लेकर हलचल पैदा कर दी है आखिर चुनाव से पहले ही इसे लागू करने का ऐलान क्यों हुआ किन-किन राज्यों में इसका असर होगा क्या ये बीजेपी की चूनावी रणनीति है, इससे बीजेपी को क्या फायदा होगा
क्या है नागरिकता कानून CAA
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 भारत सरकार द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून है. यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए छह धर्मों के शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को भारतीय नागरिकता देता है. यानी कि इस कानून के तहत तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों से आए उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आकर बस गए थे. हालांकि मुसलमानों को इस प्रावधान से बाहर रखा गया है जिस कारण कानून का विरोध हो रहा है. तीन देशों से आए विस्थापित लोगों को नागरिकता लेने के लिए कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. कानून के तहत छह अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलते ही मौलिक अधिकार भी मिल जाएंगे.
पहली बार कब आया ये बिल
भारतीय नागरिकता कानून 1995 में बदलाव करते हुए संशोधित बिल पहली बार साल 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. तब लोकसभा से बिल पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा दिया गया. 2019 चुनाव में मोदी सरकार फिर सत्ता में आई, तब बिल दोबारा संसद में पेश किया गया था.
दिसंबर 2019 में बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था और इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. इसी दौरान देशभर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे. दिल्ली के शाहीन बाग समेत कुछ इलाकों में कई महीनों तक धरना प्रदर्शन चला था. हालांकि फिर कोरोना महामारी की वजह से सब ठंडा हो गया था.
चुनाव से पहले ही CAA लागू करने का ऐलान क्यों?
लोकसभा चुनाव में करीब तीन महीने का वक्त बचा है. फरवरी के आखिरी या मार्च के शुरुआत में चुनाव की तारीख का ऐलान हो जाएगा. पहले अमित शाह और अब केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर दोनों ने बंगाल की चुनावी सभाओं में ही देशभर में सीएए लागू करने की बात कही है.
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सीएए लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था. बीजेपी का मानना है कि सीएए हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है और हिंदू वोटरों को उनकी पार्टी की ओर आकर्षित कर सकता है. खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है.
बीजेपी सीएए को देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक कदम के रूप में पेश कर रही है. इस तरह बीजेपी खुद को एक मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के रूप में पेश करने कोशिश कर रही है. हालांकि विपक्ष का आरोप है कि सीएए मुस्लिम विरोधी है और भारतीय संविधान के समानता के नियम का उल्लंघन करता है ऐसे में बीजेपी विपक्ष को CAA के विरोध को मुस्लिम तुष्टीकरण के रूप में पेश कर सकती है, जो उसके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को मजबूत कर सकता है.
बंगाल में सियासी जड़े जमाने की कोशिश में बीजेपी
पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थी काफी लंबे समय से नागरिकता की मांग कर रहे हैं. इनकी आबादी अच्छी खासी है. ये लोग बांग्लादेश से आए हैं. सीएए लागू होने से इनको नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा. 2024 चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय को लुभाकर अपनी सियासी जड़े मजबूत करना चहा रही है.
2019 लोकसभा चुनाव और 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी मतुआ समुदाय पर पकड़ बनाकर ही बड़ी कामयाबी हासिल की थी. 2014 चुनाव में बंगाल में बीजेपी के पास सिर्फ दो लोकसभा सीट थी. 2019 चुनाव में बढ़कर 18 सीटें हो गईं और 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी.
बीजेपी की इस बढ़त के पीछे मतुआ समुदाय की अहम भूमिका रही थी. अब 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने एक बार फिर सीएए का दांव चल दिया है. ये दांव बीजेपी के लिए बंगाल में संजीवनी साबित हो सकता है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद बंगाल (42) तीसरा सबसे बड़ा राज्य है.
मुसलमानों के लिए क्यों है अहम मुद्दा
मुसलमानों के लिए सीएए एक चिंता का विषय है क्योंकि उन्हें इस कानून से बाहर रखा गया है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्राप्त करने का रास्ता नहीं दिया गया है. इस कारण मुसलमानों से भेदभाव के आरोप लग रहे हैं. धर्म के आधार पर भेदभाव करने और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया जा रहा है.
दिल्ली शाही मस्जिद फतेहपुरी के इमाम मुफ़्ती मुकर्रम अहमद ने बीबीसी से बातचीत में कहा, सीएए भारतीय संविधान के खिलाफ है. ये हिंदुओं और मुसलमान में नफरत फैलाने के लिए लाया गया है. अगर सरकार को मुसलमानों से नफरत नहीं है तो नागरिकता कानून में मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं करते.
इमाम मुफ़्ती ने आगे ये भी कहा कि जब एनआरसी आएगा तो देश के सभी हिंदू, मुसलमान, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लाइन में लगेंगे. अगर सरकार इस पर कोई कार्रवाई नहीं करती है तो हम इसे इंटरनेशनल लेवल पर ले जाएंगे और सरकार की नीतियों के बारे में सभी को बताएंगे.
हालांकि गृहमंत्री अमित शाह मुस्लिम समाज को भरोसा दिलाते रहे हैं कि सीएए से भारत के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छिनेगी. फिर भी मुसलमानों के एक बड़े तबके को डर है कि सीएए के बाद केंद्र सरकार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लाएगी. तब उनको देश से बाहर कर दिया जाएगा.
CAA और NRC में अंतर
सीएए में छह गैर-मुस्लिम समुदायों के अल्पसंख्यक शामिल हैं जिन्हें भारतीय नागरिकता तब मिलेगी अगर वे 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आए हैं. जबकि एनआरसी का धर्म से कोई संबंध नहीं है. सीएए नागरिकता देता है, जबकि एनआरसी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालता है.
NRC नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर है, इसका उद्देश्य भारत से अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकालना है, चाहें वो किसी भी धर्म जाति के हों.फिलहाल एनआरसी सिर्फ असम में लागू है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद असम में एनआरसी प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है. केंद्र सरकार का मकसद पूरे देश में एनआरसी लागू करना है.
CAA पर राजनीतिक पार्टियों का है कहना
चुनाव से पहले सीएए पर एक बार फिर विवाद बढ़ता नजर आ रहा है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नागरिकता कानून का पुरजोर विरोध कर रही हैं. उन्होंने साफ साफ कह दिया है किसी भी हालत में सीएए, एनपीआर और एनआरसी को बंगाल में लागू नहीं होने दिया जाएगा. यहां तक कि टीएमसी सरकार ने 2020 में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया था.
पश्चिम बंगाल की मंत्री और टीएमसी प्रवक्ता डॉ. शशि पांजा ने सीएए लागू करने के बीजेपी के दावे पर कहा, ‘लोगों की नागरिकता बीजेपी के लिए चुनाव का मुद्दा है. बंगाल के लोग पहले ही देश के नागरिक हैं, उन्हें दोबारा नागरिकता नहीं दी जा सकती.’
वहीं ममता बनर्जी ने कहा, “बीजेपी के लोग सीएए सीएए चिल्ला रहे हैं. बंगाल में हमने सभी को नागरिकता दी है. उन्हें सारी सरकारी सुविधाएं मिलती हैं. वो वोट भी दे सकते हैं. ये कैसे हो सकता है कि वोट देते हैं और नागरिक नहीं हैं?”
कांग्रेस पार्टी का कहना है कि सीएए को धर्म के आधार पर बनाया गया है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, ‘सीएए संवैधानिक रूप से गलत है. ये संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता है. ये मौलिक सवाल है कि धर्म के आधार पर किसी को कैसे नागरिकता दी सकती है.’
वहीं AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी सीएए को संविधान विरोधी बताया. लोकसभा सांसद ओवैसी ने कहा, ‘सीएए कानून धर्म के आधार पर बनाया गया है. सीएए को एनपीआर-एनआरसी के साथ ही समझना चाहिए. आपको अपनी नागरिकता साबित करना होगी. ऐसा हुआ तो मुस्लिम, दलित और गरीबों के साथ अन्याय होगा.’
समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा, ‘सीएए बीजेपी का प्रोपेगेंडा है. नागरिकता संशोधन कानून से लोगों को फायदा होने की जगह मुल्क के हालात ज्यादा खराब होंगे.’
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अबतक सीएए-एनआरसी के खिलाफ रहे हैं. नीतीश पहले ही कह चुके हैं कि सीएए और एनआरसी को अपने राज्य बिहार में लागू नहीं होने देंगे. हालांकि नीतीश अब एनडीए में शामिल हो चुके हैं, अब देखना ये होगा कि वह किस ओर अपना रुख बदलते हैं.
CAA लागू हुआ तो नागरिकता के लिए आवेदन
आमतौर पर कानूनन भारत की नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना अनिवार्य होता है. लेकिन, सीएए लागू होने के बाद तीन देशों के छह समुदाय के लोगों को 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों और धर्मों के लोगों को नागरिकता लेने के लिए 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा.
नए नागरिकता कानून के मुताबिक सभी शर्तें पूरी करने वाले शरणार्थियों को नागरिकता लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा. इसके लिए पोर्टल तैयार कर लिया गया है. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं लिया जाएगा, बस उन्हें वो साल बताना होगा जब उन्होंने भारत में एंट्री की.
नागरिकता से जुड़े सभी मामलों की प्रक्रिया ऑनलाइन ही पूरी की जाएगी. आवेदक ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे. इसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता दे दी जाएगी. इस ऑनलाइन प्रक्रिया में राज्य सरकार को कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.
नागरिकता से जुड़े सभी मामलों की प्रक्रिया ऑनलाइन ही पूरी की जाएगी. आवेदक ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे. इसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता दे दी जाएगी, इस ऑनलाइन प्रक्रिया में,, राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा.
दोस्तों अब सवाल उठता है कि ऐन चुनाव से पहले ही सीएए के नियमों को अधिसूचित क्यों किया जा रहा है? क्या 2024 का इंतज़ार हो रहा था? चुनावों से पहले ध्रुवीकरण की राजनीति करने का आरोप झेलती रही बीजेपी ,,क्या किसी चुनावी मक़सद से इसे अब अधिसूचित करने जा रही है? आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ