Uttarkashi Tunnel Rescue Update: दोस्तों ना जाने क्यों प्रधानमंत्री मोदी जी हमेशा उस वक्त ही दूसरी चीजों में दिलचस्पी ले रहे होते है जब देश में कई मुद्दे होते है जिन पर पीएम मोदी जी को संज्ञान लेना चाहिए कई मुद्दे ऐसे होते है जिन पर पीएम मोदी जी की प्रतिक्रिया का इंतजार किया जाता है की क्या बोलेंगे क्या नहीं बोलेंगे ? अगर विदेश में कुछ हो जाए तो मोदी जी का तुरंत ट्वीट आ जाता है और देश में कुछ हो जाए वहाँ जाना तो दूर की बात है ट्वीट ही मुस्किल से देखने को मिलता है और इस बार भी यही हुआ है मजदूर फस जाए पर पीएम मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ता उनके लिए बस चुनाव जरूरी है ओर फाइटर जेट में यात्रा करना जरूरी है
उत्तरकाशी की सुरंग में (American Machine) फंसे मजदूरों के जीवन में हर दिन आ रही नई तारीख उनके लिए आशा लेकर आती है कि बस आज का दिन और वह जल्द ही बाहर आ जाएंगे, लेकिन अफसोस कि हर एक दिन के साथ इंतजार का ये सिलसिला अगले दिन पर कर्ज की तरह चढ़ जाता है. आज 16 वे दिन भी 41 मजदूरों को बचाने का प्रयास जारी है बचाव अभियान में पिछले कुछ दिनों में कई बार तकनीकी खराबी आई है जिससे निकासी प्रक्रिया में देरी हो रही है। और ऐसे में सवाल उठने लाजमी है आखिर ड्रिलिंग मशीनों के रिप्लेसमेंट पार्ट्स के लिए घंटों का इंतजार क्यों करना पड़ा? रेस्क्यू ऑपरेशन की सही प्लानिंग क्यों नहीं की गई? बचाव की रणनीति में बार-बार बदलाव क्यों हुए?
Indian Army मजदूरों को कैसे बाहर निकालेगी?
सुरंग हादसे में 41 मजदूर दो हफ्ते से ज्यादा वक्त से फंसे हुए हैं. जिस जगह मजदूर फंसे हुए हैं. वहां ना रोशनी है ना ऑक्सीजन और ना खुली हवा. इसके बाद भी वो 41 मजदूर योद्धा की तरह हिम्मत बांधे हुए हैं जिन्हें बचाने के लिए अब सेना ने मोर्चा संभाला हुआ है. दरअसल, मजदूरों को बाहर निकालने के लिए अब सेना को बुला लिया गया है जो मैनुअल ड्रिलिंग के जरिए रेस्क्यू करेगी.
उत्तरकाशी की ये सुरंग एक अनसुलझी गुत्थी बन गई है जिसे सुलझाना तो दूर उसके पास तक कोई पहुंच नहीं पाया है. अमेरिका से आई ऑगर मशीन फेल हो चुकी है. विदेशी एक्सपर्ट की हिम्मत जवाब दे चुकी है. यही वजह है कि अब सुरंग से मजदूरों को निकालने के लिए सेना को मोर्चा संभालना पड़ा है.
भारतीय सेना मैनुअल ड्रिलिंग के जरिए रास्ता बनाने का काम करेगी लेकिन मैनुअल ड्रिलिंग से पहले ऑगर मशीन के फंसे हुए शाफ्ट और ब्लेड्स को निकालना होगा क्योंकि मशीन के टुकड़े अगर सावधानी से नहीं निकाले गए तो इससे सुरंग में बिछाई गई पाइपलाइन टूट सकती है. यानी जिस ऑगर मशीन को मजूदरों को निकालने के लिए बुलाया गया था. वहीं अब सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है. लेकिन जिस तरह से सेना ने कमान संभाली है. उससे रेस्क्यू ऑपरेशन में तेजी आई है क्योंकि जबसे ऑगर मशीन खराब हुई थी. रेस्क्यू ऑपरेशन ठप्प पड़ा था
दो प्लान पर हो रहा काम
सुरंग में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए दो प्लान पर काम हो रहा है. एक तरफ सेना मैनुअल ड्रिलिंग कर रही है. तो दूसरी तरफ प्लान बी के तहत वर्टिकल ड्रिलिंग कर मजदूरों को रेस्क्यू करने की तैयारी है. इसके लिए BRO ने करीब डेढ़ किलोमीटर की सड़क बनाई है और अब इसी सड़क के जरिए कई टन वजनी मशीन दो जेसीबी की मदद से लाई गई हैं. दरअसल, 21 नवंबर के बाद से टनल में हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग की जा रही थी.
अब वर्टिकल ड्रिलिंग के जरिए रेस्क्यू होना है. जिसे सतलुज विद्युत निगम लिमिटेड यानी SVNL अंजाम देगा. हालांकि इस काम में बहुत खतरा है क्योंकि नीचे टनल में मजदूर हैं ऊपर से बड़ा होल कर नीचे जाने के लिए रास्ता बनाया जाना है. इसमें काफी मलबा गिरेगा अगर थोड़ी भी गलती हुई तो दांव उलटा पड़ सकता है और सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें कितना वक्त लगेगा ये भी साफ नहीं है. टनल के अंदर की स्थिति क्या है, ये तक किसी को मालूम नहीं है जिसे समझने के लिए अब जाकर टनल के अंदर ड्रोन से मैपिंग की जा रही है. ये बात समझ आती है कि रेस्क्यू ऑपरेशन में परेशानी आ रही है. मलबे में भारी पत्थरों की वजह से ड्रिलिंग रोकनी पड़ रही है. लेकिन सवाल इस बात का है कि पहले हुए हादसों से कोई सीख क्यों नहीं ली.
दोस्तों अब सवाल उठता है आखिर इतने रेस्क्यू प्लान पर काम करने के बाद भी मजदूर बाहर क्यों नहीं आ पाए हैं. वर्टिकल ड्रिलिंग पहले शुरू क्यों नहीं की गई? बचाव कार्य के लिए अब भी विदेशी विशेषज्ञ और मशीनों पर निर्भर क्यों रहना पड़ रहा है? और सबसे बड़ा सवाल बिना उचित अध्ययन के सुरंग निर्माण क्यों शुरू किया गया था? आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है कमेन्ट कर जरूर बताएँ