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New Criminal Law: कितने खतरनाक और फायदेमंद है मोदी के तीन नए आपराधिक कानून?

3 new criminal

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New Criminal Law: दोस्तों महीने की शुरुआत के साथ ही देश में नए कानून की भी शुरुआत हो गई है तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए जिन्हे तीन पुराने आपराधिक कानून की जगह लाया गया है यह कानून पहले से भी ज़्यादा पुलिस को पावर देने जा रहा है। पुलिस राज कायम करने जा रहा है। जी हाँ ये में नहीं कह रही विपक्ष और कई वकीलों का ये मानना है जिसका सीधा नुकसान न सिर्फ पुलिस वकीलों को होगा बल्कि सीधा सीधा आपको और मुझको होगा  यानि आम जनता को होगा कैसे ये तीन कानून जनता की लिए मुसीबत बन सकते है आखिर इसका विरोध करने के बावजूद भी इसे क्यों लागू किया गया क्या देश में पुलिस राज कायम करने के लिए मोदी सरकार ये कानून लाई है

क्या है नया नियम ?

देश में अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानून अब गुजरे वक्त की बात हो गई है.जी हाँ,, आज से तीनों (bharatiya nyaya sanhita) नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय अधिनियम यानि (BNS) सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता यानि (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita) (BNSS) और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम यानि (BSA) के प्रावधान लागू किए गए है नए कानूनों से आधुनिक न्याय प्रणाली स्थापित होगी. इसमें जीरो एफआईआर पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना एसएमएस से समन भेजना जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का इस्तेमाल होगा. जघन्य अपराध वाली जगहों की वीडियोग्राफी भी अनिवार्य कर दी गई है. सबसे खास बात यह है कि वर्ष 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट कंप्यूटरीकृत कर दिए जाएंगे.

इन कानूनों को पिछले साल संसद से पारित किया गया. जिस वक्त संसद के दोनों सदनों में इन कानूनों को पारित किया गया था उस समय विपक्षी सांसदों की तरफ से काफी ज्यादा हंगामा देखने को मिला. इस पर कांग्रेस टीएमसी समेत कई दलों के दर्जनों सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया था.भारतीय न्याय संहिता (BNS) में कुल 358 धाराएं हैं. पहले आईपीसी में 511 धाराएं थीं. BNS में 20 नए अपराध शामिल किए गए हैं. 33 अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई गई है. 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है. 83 अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है. छह अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है. अधिनियम में 19 धाराएं निरस्त या हटा दी गई हैं. 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं. 22 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है.

क्या होगा फायदा ?

इसी तरह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में कुल 531 धाराएं हैं. सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं. BNSS में कुल 177 प्रावधान बदले गए हैं. इसमें 9 नई धाराओं के साथ-साथ 39 नई उपधाराएं भी जोड़ी गई हैं. 44 नए प्रावधान और स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं. 35 सेक्शन में समय-सीमा जोड़ी गई है और 35 सेक्शन पर ऑडियो-वीडियो प्रावधान जोड़ा गया है. कुल 14 धाराएं निरस्त और हटा दी गई हैं.भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं. कुल 24 प्रावधान बदले गए हैं. दो नई धाराएं और छह उप-धाराएं जोड़ी गई हैं. .जबकि 6 धाराएं हटा दी गई हैं. नए कानून के तहत दस्तावेजों की तरह ही इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी मान्य होंगे. इनमें ईमेल मोबाइल फोन इंटरनेट आदि शामिल हैं. इसके साथ ही इसमें गवाहों के लिए सुरक्षा के प्रावधान भी किए गए हैं.

नए कानून के तहत महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध के मामले को धारा 63 से 99 की बीच रखा गया है. रेप या बलात्कार के लिए धारा 63 दुष्कर्म के सजा के लिए धारा 64 सामूहिक बलात्कार या गैंगरेप के लिए धारा 70 और यौन उत्पीड़न को धारा 74 में परिभाषित किया गया है. नाबालिग से रेप या गैंगरेप मामले में अधिकतम सजा फांसी का प्रावधान किया गया है.वहीं दहेज हत्या धारा 79 और दहेज प्रताड़ना के मामलों को धारा 84 में बताया गया है. इसके अलावा शादी का वादा कर दुषकर्म करने वाले अपराध को रेप से अलग रखा गया है इसे अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है.वैवाहिक मामलों में पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक होने पर जबरन शारीरिक संबंध बनाने पर इस अपराध को रेप या मैरिटल रेप नहीं माना जाएगा. यदि कोई शादी का वादा कर संबंध बनाता है और फिर वादा पूरा नहीं करता है तो ऐसे मामलों में अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है.

वही मॉब लिंचिंग को भी अब हत्या के अपराध के दायरे में लाया गया है. नए कानून में हत्या के अपराध के लिए 7 साल की कैद आजीवन कारावास और फांसी की सजा का प्रावधान है. वहीं चोट पहुंचाने के अपराधों के बारे में धारा 100 से 146 तक परिभाषित किया गया है. हत्या के मामले में सजा का प्रावधान धारा 103 में है. वहीं संगठित अपराधों के मामले में धारा 111 में सजा का प्रावधान है. वहीं आतंकवाद के मामलों को धारा 113 में परिभाषित किया गया है.नए कानून में राजद्रोह के मामलों के लिए अलग से धारा नहीं दी गई है. जबकि इससे पहले आईपीसी में राजद्रोह कानून का जिक्र है. बीएनएस में राजद्रोह से जुड़े मामलों के लिए धारा 147 से 158 तक में जानकारी दी गई है. इसमें दोषी व्यक्ति को उम्रकैद और फांसी जैसी सजा का प्रावधान है. नए कानूनों में किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना क्रूरता माना गया है. इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को 3 साल की सजा का प्रावधान है.बीएनएस में चुनाव से जुड़े अपराधों का प्रावधान धारा 169 से धारा 177 तक दिया गया है

इन कानून से क्या है नुकसान ?

दोस्तों ये तो थे बदलाव जो हुए है लेकिन सवाल ये है आखिर इन तीनों  नए कानून में ऐसा क्या है जिसको लेकर विपक्ष कह रहा है की पुलिस को बेहिसाब पावर मिलेगी इससे सीधा दमन आम जनता का होगा उन लोगों का दमन होगा जो सरकार से सवाल पूछते है या जो सरकार की भाषा बोलने को तैयार नहीं होते तो चलिए जानते है इनके दुष्प्रभाव क्या हो सकते है

सबसे बड़ा दोष है  ये मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है वह है पुलिस हिरासत में रखे जाने वाले दिनों की संख्या में वृद्धि का प्रावधान। जबकि मौजूदा कानूनों के तहत उसे 15 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा जा सकता है संशोधित प्रावधान में कथित अपराध की गंभीरता के आधार पर 60 से 90 दिनों की पुलिस हिरासत का प्रावधान है। इस प्रावधान का दुरुपयोग होने की संभावना है क्योंकि पुलिस को केवल संदेह के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार है। हालांकि गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का प्रावधान है लेकिन यह सर्वविदित है कि मैजिस्ट्रेट लगभग हमेशा पुलिस रिमांड के लिए सहमत होते हैं। इसलिए अब किसी भी व्यक्ति को जेल नहीं बल्कि जमानत के सिद्धांत के विपरीत 90 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखना आदर्श होगा।

विपरीत निर्णय और उच्च न्यायालयों द्वारा आदेशों को पलटने की आशंका के कारण निचली अदालतें जमानत नहीं देती हैं। इसी तरह उच्च न्यायालय भी विपरीत टिप्पणी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के डर से जमानत नहीं देती है। इससे न्याय मिलने में अनावश्यक देरी होती है। पुलिस की यह शक्ति जिसमें षड्यंत्र के आरोपी भी शामिल हैं  नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता से संबंधित गंभीर परिणामों को जन्म दे सकती है। पुलिस को बुनियादी आरोप स्थापित करने में इतना लंबा समय क्यों लगना चाहिए? और विडंबना यह है कि पुलिस को दिया गया बयान अदालतों में सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है! नए कानूनों का एक अन्य प्रावधान बी.एन.एस.एस. की धारा 173(3) के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) के पंजीकरण से संबंधित है। यह ऐसे अपराध के लिए एफ.आई.आर. दर्ज करने को विवेकाधीन बना देगा जिसमें सजा 3 से 7 साल तक है। यह हाशिए पर पड़े समूहों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है जो एफ.आई.आर. भी दर्ज नहीं करवा पाएंगे। एक अन्य प्रावधान जिसके दुरुपयोग की संभावना है वह राजद्रोह से संबंधित कानूनों से संबंधित है। बी.एन.एस. की धारा 152 के तहत चार तरह की गतिविधियों को कानूनी परिभाषा दिए बिना अपराध घोषित किया गया है विध्वंसकारी गतिविधियां अलगाववाद भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली अलगाववादी गतिविधियां और सशस्त्र विद्रोह। इससे दुरुपयोग हो सकता है और न्याय मिलने में देरी हो सकती है। कई अन्य खामियां हैं जिनसे निपटा जाना चाहिए और हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए सबसे अच्छे कानूनी दिमागों को शामिल किया जाना चाहिए। खैर आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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