Electrol Bonds: दोस्तों सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसलों ने मोदी सरकार को बैक फुट पर ला दिया है सांसदों में भ्रष्टाचार का मामला हो या चंडीगढ़ मे MAYOR चुनाव का ,,या फिर इलेक्टरोल बॉन्ड को सार्वजनिक करने का और इस मामले में तो मोदी सरकार बुरी तरह फस गई है इसी से जनता का ध्यान भटकाने के लिए कल राजधानी दिल्ली में सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर्स और youtubers को पीएम मोदी सम्मानित करते है ,,पुरस्कार देते है main मीडिया में पूरे दिन इसी का गुणगान चला एसबीआई की नाकामी को छुपाने के लिए या मोदी इमेज को सही रखने के लिए ???
देश का सबसे बड़ा बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एसबीआई खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहा है क्या ये है अमृतकाल जहां सरकारी बैंक एसबीआई बेधड़क बगैर डरे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करता है दोस्तों आपको तो पता ही होगा जब जब मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय ने आदेश दिया है उनके तमाम आदेशों का पालन एसबीआई ने 24 से 48 घंटों मे पूरा किया है और अब उसे चुनाव तक का वक्त चाहिए ??क्यों ??? और अब तो भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी वेबसाइट से चुनावी बॉन्ड से जुड़े दस्तावेज़ ही डिलीट कर दिए
चुनावी चंदा किसके लिए बनेगा फंदा ?
स्टेट बैंक काग़ज़ नहीं दिखा रहा है किसने चंदा दिया है उसका काग़ज़ नहीं दिखा रहा है आपको याद है 2019 में सरकार के मंत्री कहते थे कि काग़ज़ तो दिखाना पड़ेगा लेकिन जब इलेक्टोरल बॉन्ड का कागज़ दिखाने की बारी आई तो सांस अटक गई है। ज़िद पर अड़े नज़र आते हैं कि का़ग़ज़ नहीं दिखाएंगे। सरकार जगह जगह मोदी की गारंटी के पोस्टर टांग रही है क्या इस बात की गारंटी मिल सकती है कि लोक सभा चुनाव से पहले चंदा देने वालों की जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी?
भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी वेबसाइट से चुनावी बॉन्ड से जुड़े दस्तावेज हटा दिए हैं. यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब बैंक ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉन्ड का विवरण जमा करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा है. अब इस पर एसबीआई कोर्ट में क्या जवाब देगा आपको क्या लगता है जरूर बताएगा पर मुझे लगता है की एसबीआई बोलेगा सर्वर हैक हो गया WEBSITE इशू है इसलीय ऑल डाटा DELETED
रिपोर्ट के अनुसार जो लिंक या वेबपेज एसबीआई की वेबसाइट पर मौजूद नहीं हैं उनमें डोनर्स यानि (चंदा देने वालों) के लिए ऑपरेटिंग दिशानिर्देश और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न या FAQ वाले वेबपेज शामिल हैं. डोनर्स के लिए दिशानिर्देश शीर्षक वाले दस्तावेज़ में मूल रूप से एक गजट अधिसूचना थी जिसे 2 जनवरी, 2018 को जारी किया गया था इसमें बुनियादी जानकारी जैसे कि कौन चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है चुनावी बॉन्ड किस मूल्यवर्ग में उपलब्ध थे, चुनावी बॉन्ड खरीदने के लिए कौन से दस्तावेज़ आवश्यक थे, बॉन्ड, कैसे खरीदें (एनईएफटी, ऑनलाइन लेनदेन आदि के जरिये) और बॉन्ड की खरीद के लिए एसबीआई की कौन-सी शाखाएं अधिकृत हैं वगैरह दर्ज थे.
वहीं, एफएक्यू वाले हिस्से में एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड से संबंधित बुनियादी जानकारी जैसे केवाईसी जरूरतें और बॉन्ड की खरीद के लिए ,,आवश्यक नागरिकता प्रमाण आदि दिए गए थे. हटाए गए दस्तावेज़ वरिष्ठ पत्रकार नितिन सेठी और एक अन्य सोशल मीडिया यूजर @Indian_nagrik द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा किए गए.
सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को 6 मार्च तक खरीदे गए सभी चुनावी बॉन्ड्स का विवरण जारी करने का आदेश दिया था. आंकड़ों के अनुसार बॉन्ड्स की नवीनतम किश्त सहित कुल मिलाकर एसबीआई द्वारा 16,518.11 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं. द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड से संबंधित महत्वपूर्ण डेटा ,,मोदी सरकार और वित्त मंत्रालय को दिया है कुछ मौकों पर 48 घंटों के भीतर भी. इस तथ्य की रोशनी में बैंक के इस तर्क को स्वीकार करना मुश्किल है कि बॉन्ड से जुड़े विवरण को जमा करने के लिए कई महीने लगेंगे.
उदाहरण के लिए, रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि एसबीआई ने बॉन्ड को भुनाने की समयसीमा समाप्त होने के 48 घंटों के भीतर,, देशभर से चुनावी बॉन्ड पर डेटा जमा किया और वित्त मंत्रालय को इसकी जानकारी दी. रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक ने बिक्री की हर विंडो अवधि के बाद मंत्रालय के साथ ऐसी जानकारी साझा की. कलेक्टिव ने साल 2020 तक भेजे जा रहे ऐसे संदेशों को सत्यापित किया है.
दोस्तों दिलचस्प बात तो ये है कि रिपोर्ट में बताया गया है कि चुनावी बॉन्ड से संबंधित काम- मुद्रण से लेकर भुनाए जाने तक- की देखरेख एसबीआई की एक स्पेशल टीम द्वारा की जाती थी जिसे पहले ट्रांजेक्शन बैंकिंग यूनिट (टीबीयू) कहा जाता था. इस टीम ने कई अवसरों पर शॉर्ट नोटिस पर सरकार के लिए जानकारी एकत्र की है और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को चुनावी बॉन्ड के ट्रेंड्स के बारे में सूचित किया है.
बीजेपी के चक्कर में फंस गया एसबीआई
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया 200 साल पुराना बैंक है और भारत का सबसे बड़ा बैंक है।, जिस बैंक के पास 48 करोड़ ग्राहक हो उसका यह कहना कि 21 दिनों के भीतर इलेक्टोरल बॉन्ड का हिसाब-किताब नहीं दिया जा सकता है भारतीय स्टेट बैंक की देश भर में करीब 28 हजार शाखाएं हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 29 (हर राज्य में एक), को इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने का अधिकार है. SBI की इन 29 में से सिर्फ 19 शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री हुई और इन बॉन्ड को बैंक की 14 शाखाओं में कैश कराया गया! फिर भी उसे इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी चुनाव आयोग से साझा करने के लिए वक्त चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को निर्देश दिया था कि वह 6 मार्च तक चुनाव आयोग से जानकारी साझा करे. SBI ने तर्क दिया उसे बॉन्ड के खरीदारों व राजनीतिक दलों के मिलान के लिए वक्त लगेगा जबकि सच्चाई यह है कि ये सारी जानकारी दो अलग जगहों पर जमा की जाती है सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र में…. SBI ने कहा है कि बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारियां सील्ड कवर में प्रतिदिन एसबीआई हेड ऑफिस को भेजी जाती हैं!, अगर SBI के मुंबई हेड ऑफिस के पास ये जानकारी है तो फिर इसे जमा करने में 4 महीने का वक्त क्यों लग रहा है? बैंकों में सारे काम डिजिटल हो रहे हैं पर लगता है बस इलेक्टोरल बॉन्ड का महाकाव्य SBI ने ताम्रपत्र पर लिख रखा है। तभी तो धुंदने में इतना वक्त चाहिए ये है 5G के डिजिटल भारत का हाल ! कुल 22 हजार इलेक्ट्राल बॉन्ड खरीदे गए जो ज्यादातर एक पार्टी के पास गए ! अब उनका रिकॉर्ड देने के लिए SBI ने 90 दिन मांग लिए है जो सिर्फ 90 सेकेंड का काम है!
दोस्तों इलेक्टरोल बॉन्ड जिसकी सच्चाई बहार आने से बीजेपी 2024 का चुनाव हार सकती है तो उस जानकारी को कैसे बहार आने दे सकती है सरकार भला आप ही बताये सच्चाई बहार आ गई तो 400 पार कैसे होगा मोदी का परिवार बात सरकार जाने की नहीं है बात देश के साथ हो रहे गद्दारी की है दोस्तों हम उमीद कैसे कर सकते है जब sebi से ही अदानी का कुछ नहीं हुआ तो एसबीआई कैसे कुछ कर सकता सेबी को तो मोदी मित्र का ही काम था यहाँ तो एसबीआई को सरकार जी के खिलाफ जाना है जब विपक्ष लूटे तो जेल हो जाती है लेकिन सरकार जी या सरकार जी का करीबी लूटे ,,तो agenciya ,,आयोग,,,बैंक ,,कानून ही फेल हो जाता है ,,आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ