Jaisalmer Desert Festival 2024: अगर आप राजस्थान के जैसलमेर में होने वाले डेजर्ट फेस्टिवल में जाना चाहते हैं तो तैयारी कर लें. यह फेस्टिवल कल यानी 22 फरवरी से शुरू हो रहा है. दो दिवसीय यह फेस्टिवल 24 फरवरी को समाप्त होगा. इस फेस्टिवल में टूरिस्ट राजस्थान की रंग-बिरंगी संस्कृति को करीब से देख सकेंगे. यहां आप रेगिस्तान का जहाज ऊंट देख सकते हैं और ऊंटों की दौड़ का भी आनंद ले सकते हैं. जैसलमेर के डेजर्ट (Desert Festival ) फेस्टिवल को मरू महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है.
डेजर्ट फेस्टिवल की थीम?
जैसलमेर में होने वाले डेजर्ट फेस्टिवल की इस बार की थीम बैक टू द डेजर्ट है. इस फेस्टिवल का आयोजन राजस्थान पर्यटक विभाग द्वारा किया जाता है. इस फेस्टीवल का आयोजन सम गांव के पास स्थित लखमना ड्यून्स में होगा. जैसलमेर से इस गांव की दूरी करीब 44 किलोमीटर पड़ती है और (maru mela jaisalmer 2024 date) टूरिस्ट एक घंटे में पहुंच सकते गैं. इस फेस्टिवल की शुरुआत लक्ष्मीनाथ मंदिर में शोभायात्रा के साथ होगी और यह रंग-बिरंगा उत्सव दो दिनों तक चलेगा. इस दौरान कई कार्यक्रम होंगे.
फेस्टिवल में क्या होगा खास
यह फेस्टिवल दो दिन तक चलेगा. इसमें कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. पर्यटक इसमें हॉट एयर बैलून से राजस्थानी लोकनृत्य का लुत्फ उठा सकते हैं. अगल-अलग तरह की प्रतियोगिताएं भी आयोजित होंगी. महोत्सव में लंबी मूंछ, मिस्टर डेजर्ट और पगड़ी बांधने जैसी प्रतियोगिताएं होंगी. इन प्रतियोगिताओं में जीतने वालों को इनाम भी दिया जाएगा. इस फेस्टिवल में ऊंट दौड़ भी होगी. कलाकार ऊंट पर बैठकर करतब दिखाएंगे.
कैसे होगी फेस्टिवल में एंट्री
अगर आप डेजर्ट फेस्टिवल देखने जा रहे हैं, तो समय का ध्यान रखें। सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक आपको डेजर्ट फेस्टिवल में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा। फेस्टिवल में जाने के लिए एंट्री फीस देनी होगी. भारतीय पर्यटकों के लिए फेस्टिवल में जाने के लिए 20 रुपए एंट्री फीस रखी गई है, जबकि विदेशी टूरिस्टों के लिए 100 रुपए फीस है. अगर पर्यटक ऊंट की सवारी करना चाहते हैं तो इसके लिए अलग से फीस देनी होगी. फेस्टिवल में अलग-अलग तरह के फूड स्टॉल लगेंगे. इस दौरान पर्यटक राजस्थानी व्यंजनों का भी लुत्फ उठा सकते हैं.
इन जगहों पर भी घूम सकते है
साथ ही फेस्टिवल के बाद यहां सोनार किला घूमने जरूर जाएं। यह अपनी प्राचीन विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा आप लक्ष्मीनाथ मंदिर, जैन मंदिरों और स्मारकों की सैर भी कर सकते हैं। और गड़ीसर झील भी देख सकते है इसका इतिहास 1400 ईस्वी पुराना है। इसे वर्षा जल संचयन के लिए एक संरक्षण जलाशय के रूप में बनाया गया था,,, उस जमाने में यह पूरे शहर के लिए जल का प्रमुख स्त्रोत हुआ करता था। यहां आप बोट का आनंद ले सकते हैं साथ ही साथ प्रवासी पक्षियां भी यहां देखने को मिलेंगी ।
पटवों की हवेली
लगभग 1805 में बनी पटवों की हवेली जैसलमेर की सबसे बड़ी और सबसे प्रसिद्ध हवेली मानी जाती है। इसका निर्माण धनी व्यापारी और उस समय के प्रमुख बैंकर गुमान चंद पटवा और उनके पांच बेटों के लिए किया गया था। हवेली के अंदर आपको सुंदर मीनाकारी और मिरर वर्क देखने को मिलेगा। यह एक प्रकार से म्यूजियम में परिवर्तित हो चुकी है, जहाँ पर्यटक राजस्थानी संस्कृति और इतिहास के दर्शन कर सकते हैं।
कुलधरा गांव
जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित 13वीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया था। गांव की लड़की को रियासत के दुष्ट दीवान सलीम सिंह से बचाने के लिए रातों रात गांववालों ने यह गांव खाली कर दिया। तब से यह विरान पड़ा है। गांव में खंडहरों में घर, मंदिर और अन्य संरचनाएं शामिल हैं, जो पालीवाल ब्राह्मणों की वास्तुकला और समृद्धि की कहानी कहती हैं।