Caste Census: दोस्तों cwc की बैठक हुई और दो बड़े फैसले हुए पहला फैसला की काँग्रेस पार्टी हमास के साथ खड़ी है मतलब की जो लोग rape कर रहे है आतंक फैला रहे है मानवता के ऊपर कलंक है क्यों आखिर उन आतंकवावादियों के साथ काँग्रेस (Congress) खड़ी है और ऐसे महोबबत की दुकान खोली जा रही है हमास का साथ देकर देश पीएम मोदी इजरायल के साथ खड़ा है इनको तो उल्टा चलना ही है चुनाव जो है लाइम लाइट में भी तो रहना है दूसरा फैसला किया की जातिगत जनगणना जरूर करायेगे
जी हाँ कांग्रेस ने जातीय राजनीति के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है. पहले जातिगत जनगणना को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे ने अप्रैल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था, उसके बाद संसद में महिला आरक्षण बिल लाये जाने के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने महिलाओं के बहाने ओबीसी आरक्षण की मांग रखी. अब CWC में भी कांग्रेस नेताओं ने बैठ कर पूरे इत्मीनान से फैसला (Rahul Gandhi) कर लिया है कि केंद्र की सत्ता में पार्टी की वापसी हुई तो सरकार जातीय जनगणना कराएगी. सिर्फ जातिगत जनगणना ही नहीं CWC में आरक्षण की सीमा बढ़ाने के लिए संसद के जरिये कानून बनाने का भी निर्णय हुआ है. विपक्षी खेमे प्रमुख नेता शरद पवार ने भी आरक्षण की तय की गयी ऊपरी सीमा बढ़ाई जानी चाहिये.
ओबीसी वोट शेयर के आंकड़े तो कांग्रेस के खिलाफ
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी की तरह जातिगत जनगणना को लेकर राहुल गांधी भी यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये हमारी मांग नहीं बल्कि जिद है. आम आदमी पार्टी जैसे भ्रष्टाचार के मूडे पर सत्ता में आई आज खुद भरस्टाचार में लिप्त है और इनका भी शायद यही हश्र होना है लक्ष्य तो 2024 का आम चुनाव है, लेकिन कांग्रेस मौजूदा विधानसभा चुनावों के लिए भी ये दांव चल चुकी है. जातिगत जनगणना कराने के लिए कांग्रेस बीजेपी पर दबाव भी बना रही है और ये भी मैसेज देने की कोशिश है कि वो इस मुद्दे पर क्षेत्रीय दलों के साथ खड़ी है ताकि INDIA अगले आम चुनाव तक कायम रहे.
दोस्तों राहुल गांधी को लगता है कि बीजेपी के खिलाफ जातिगत जनगणना का दांव अचूक हथियार साबित हो सकता है क्योंकि मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर दिया है लेकिन आंकड़े तो यही कह रहे हैं कि बीजेपी के जातिगत जनगणना के खिलाफ खड़े होने के बावजूद ओबीसी वोट उसे भरपूर मिल रहा है.और बीजेपी का ओबीसी वोट शेयर बढ़ने का मतलब तो यही हुआ कि जातीय राजनीति करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों का वोट शेयर घट रहा है- ऐसे में कांग्रेस को भला कितना फायदा मिल सकता है?
कांग्रेस को तो बचे खुचे वोटों में ही हिस्सेदारी खोजनी होगी और वो हिस्सेदारी आखिर कितना होगी जो भी होगी क्षेत्रीय दलों की कृपा पर ही निर्भर होगी. विपक्षी गठबंधन में समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव और उनके साथी समझाने लगे हैं कि वो सीटें मांग नहीं रहे हैं ये तो समाजवादी पार्टी तय करेगी कि कांग्रेस को या किसी भी गठबंधन साथी को हिस्से में कितनी सीटें देनी है.
CSDS सर्वे के आंकड़े
अखिलेश यादव अगर कांग्रेस को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं, तो राहुल गांधी को उनकी ही भाषा में जवाब दे रहे हैं भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी भी तो यही समझा रहे थे कि क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करना ही होगा क्योंकि उनके पास कोई राष्ट्रीय विचारधारा नहीं है.सही बात है लेकिन राहुल गांधी को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि, यूपी में अखिलेश यादव को भले ही ओबीसी वोट नहीं मिल रहे हों लेकिन यादव वोट बैंक तो उनके साथ है ही.
फिर भी मान लेते हैं कि कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को राजनीतिक साथी मान कर बीजेपी जातीय राजनीति के जरिये बीजेपी को चैलेंज करने के मकसद से आगे बढ़ रही है, तो राहुल गांधी के सलाहकारों और कांग्रेस के रणनीतिकारों को एक बार पिछले वोट शेयर के आंकड़ों पर भी नजर मार लेनी चाहिये.खैर कांग्रेस को पहले ही ये समझ लेना चाहिये था कि बीजेपी जातिगत जनगणना से इनकार क्यों कर रही है. बीजेपी जानती है कि जिन मुद्दों के सहारे वो आगे बढ़ रही है, ओबीसी वोटर बढ़ चढ़ कर सपोर्ट कर रहा है. फिर बीजेपी ये काम क्यों करे? वैसे भी ये सब बीजेपी की संस्था आरएसएस को भी नहीं पसंद है क्योंकि ऐसा करना हिंदुओं को बांटने जैसा है – लेकिन ये बात कांग्रेस नेतृत्व को नहीं समझ में आ रही है.
CSDS के लोकनीति सर्वे के मुताबिक 2009 में बीजेपी को ओबीसी का करीब 22 फीसदी वोट मिला था. ये तब की बात है जब 5 साल सरकार चलाने के बाद कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी.और वैसे ही 5 साल सरकार चलाने के बाद जब 2019 में बीजेपी सत्ता में लौटी तो ओबीसी वोट शेयर बढ़ कर 44 फीसदी हो गया था. मतलब की पूरा डबल.
बिहार में जातिगत गणना का जोर शोर से ढिंढोरा पीटने के बाद भी, बीजेपी का ओबीसी वोट शेयर बढ़ ही रहा है.लोकनीति सर्वे के आंकड़े ही बता रहे हैं कि अब बीजेपी का ओबीसी वोट शेयर 2019 के 44 फीसदी के मुकाबले 45 फीसदी हो गया है – कांग्रेस नेता चाहें तो कल्पना कर सकते हैं 2024 में ये आंकड़ा कैसा रहने वाला है. कांग्रेस की तरफ से ऐसा कौन सा ‘खेला’ किया जा सकता है कि बीजेपी को मिल रहा ओबीसी वोट उसके हाथ से निकल जाये.
क्या काँग्रेस के पास कोई और रणनीति नहीं ?
अब अगर कांग्रेस को मिलने वाले ओबीसी वोट की बात करें तो लोकनीति सर्वे के अनुसार 2009 में उसका ओबीसी वोट शेयर बीजेपी से 2 फीसदी ज्यादा यानी 24 फीसदी था, लेकिन 2019 आते आते ये 15 फीसदी हो गया. मानते हैं कि कांग्रेस ने सुधार किया है और 2023 में वो 2009 के स्तर से ऊपर उठ चुकी है, लेकिन बीजेपी के 45 फीसदी वोट शेयर के मुकाबले कांग्रेस के 27 फीसदी कितना अहमियत रखते हैं. जिन क्षेत्रीय दलों के साथ मिल कर कांग्रेस बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का प्रयास कर रही है, उनका हाल भी तो बुरा ही है. क्षेत्रीय दलों को 2019 में 27 फीसदी वोट शेयर मिले थे, लेकिन जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बीच आये सर्वे के आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि क्षेत्रीय दलों का ओबीसी वोट शेयर घट ही रहा है – 2023 में ये 23 फीसदी पर पहुंच चुका है.
दोस्तों एक बात नहीं समझ में आती कि कांग्रेस क्यों हमेशा बीजेपी के हिसाब से अपनी नीति और रणनीति बनाती है, वो लोगों की जरूरत के हिसाब से कोई काम क्यों नहीं करती. ऐसे काम भी तो हो सकते हैं जिससे केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी तिलमिला उठे .अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा की काँग्रेस की ये रणनीति काम आती है या नहीं अपनी राय कमेन्ट कर जरूर बताएँ