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PM Modi Russia Visit: क्या सच में भारत की विकास की रफ्तार से आज दुनिया हैरान?

PM Modi Russia Visit: भारत की विकास की रफ्तार से आज दुनिया हैरान ये में नहीं कह रही बल्कि पीएम मोदी ने आज मॉस्को में ये बयान दिया मोदी जी ने तो ये भी कहा था मणिपुर के हालात अब स्थिर लेकिन सच्चाई अलग ही है मोदी जी तो कुछ भी बोल सकते है लेकिन रूस में जो बोला  बिल्कुल ठीक बोला विकास की रफ्तार से हम भी हैरान है बिहार का विकास जो धड़ल्ले से गिर रहा है भारत के एयरपोर्ट हो पुल हो सड़के हो सब की रफ्तार बहुत ज्यादा है शायद (Child food poverty report 2024 india) विकास की स्पीड सह नहीं पा रहा भारत  भारत में लोगों को खाने के लिए भोजन नहीं मिल रहा लोग भूख से मर जाते हैं कुपोषण के शिकार बच्‍चों की संख्‍या हजारों लाखों में भी नहीं करोड़ों में है।

एक ओर भारत विश्वगुरु होने और दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के दावे कर रहा है। जहां एक पूंजीपति के बेटे-बेटियों की शादी एक ही दिन में अरबों रुपए ख़र्च कर दिए जाते हैं और मीडिया उसका महिमामडंन भी करती हुई दिखती है।इसी माहोल मे यूनीसेफ (Child food poverty report 2024) की एक रिपोर्ट आई जिसका कोई जिक्र तक नहीं  जिसके अनुसार बच्चों की भुखमरी और कुपोषण के मामले में भारत अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान बांग्लादेश नेपाल और श्रीलंका से भी आगे है।

विश्वगुरु के विकास की सच्चाई !

दोस्तों दुनिया भर में कुल 93 देश हैं सभी देशों में इस बक़्त पॉलिटिकल इकोनोमी की एक जैसी प्रक्रिया लागू है जिसे पूंजीवाद कहते हैं इसके तहत सभी देशों में चाहें वे विकसित हों या विकासशील।चंद मुट्ठी भर लोगों के हाथ में बेशुमार दौलत इकट्ठी होती जा रही है और दूसरी ओर कंगाली (UNICEF child food poverty 2024) दरिद्रता के महासागर बनते जा रहे हैं। अमीर-ग़रीब के बीच की इस खाई के चौड़ा होने की प्रक्रिया की गति दिनोंदिन तेज़ होती जा रही है।

हमारा देश ख़ासतौर पर मोदी राज़ में जहां एक ओर दुनिया में किसी भी देश के मुक़ाबले ज्यादा खरबपति पैदा कर रहा है फोर्ब्स की दुनिया के सबसे अमीर 500 धन-पशुओं की लिस्ट में जहाँ आज 8 भारतीय विराजमान हैं वहीं ‘विश्व भुखमरी इंडेक्स’ द्वारा 2023 में किए गए सर्वे के अनुसार भुखमरी के मामले में सबसे कंगाल 125 देशों में 111वें स्थान पर है वह अपने सभी पड़ोसी देशों में भी सबसे पीछे सोमालिया के नज़दीक है।देश में 5 साल से कम उम्र के 34.7% बच्चे मरियल हैंभूखे सोते हैं। एशिया के देशों में भी ये औसत 2.8% है मतलब इंडिया एशिया के गरीब देशों में भी सबसे ग़रीब है। ‘विश्वगुरु और ‘विकसित भारत’ होने की प्रचार करते वक्त सरकार जी  देश के 115 करोड़ ग़रीबों को नहींबल्कि महा-अमीर कॉर्पोरेट लुटेरों अडानी-अंबानी-टाटाओं और 25 करोड़ मध्य वर्ग को ही देश मान रहे होते हैं।

यूनिसेफ की रिपोर्ट मुताबिक

दुनिया भर में भुखमरी के शिकार हो रहे बच्चों का अध्ययन करने और उसका निराकरण सुझाने के मक़सद से यूनिसेफ ने ‘बाल भोजन दरिद्रता’ (child food poverty) नाम का विभाग प्रस्थापित किया। दुनिया के कुल 93 देशों में से 37 ग़रीब देशों को चुना गयाजहां दुनिया के कुल 90% ग़रीब बच्चे रहते हैं। इस विभाग ने इन देशों में बाल-भुखमरी व कुपोषण का व्यापक अध्ययन कियाचूंकि इन ग़रीब देशों के सरकार  अपने देशों में फैल रही गुरबत को छुपाने के लिए लंबी-लंबी डींगें हांकते हैं इसलिए यूनिसेफ ने इस अभियान के तहत इन देशों के सरकारी आंकड़ों को भी परखा और कुल 670 सर्वे किए जिनके आधार पर अपनी विस्तृत 92 पृष्ठ की रिपोर्ट तैयार की और 6 जून 2024 को उसे इन्टरनेट पर डाला।

137 गरीब देशों में भी 63 ऐसे अत्यंत कंगाल देशों में यूनिसेफ ने विशेष अध्ययन कियाजहां बच्चे लगभग नियमित रूप से पेट भरने लायक भोजन प्राप्त नहीं कर पाते। इन 63 देशों में भी भारत का नंबर 40वां है। बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में विश्वगुरु भारत से ख़राब हालात मात्र 23 देशों की है जैसे इथियोपिया सिएगा लिओन अफ़गानिस्तान और सोमालिया जो सबसे आख़िर में है। आश्चर्यजनक रूप से श्रीलंका में बच्चों के पोषण की स्थिति हमारे पड़ोसी देशों में सबसे अच्छी है वह 5 वें नंबर पर है। बांग्लादेश 20 वें पाकिस्तान भी हमसे 2 नंबर ऊपर 38 वें नंबर पर है

अमेरिका की शह और मदद से असभ्य आतंकी देश इजराइल ने गाज़ा को तबाह कर डाला हैगाज़ा में आज दुनिया भर में सबसे भयानक हालात हैं10 में से 9 बच्चे भुखमरी के शिकार हैं। उन सरकारों ने भी यूनिसेफ को आश्वासन दिया है कि 2030 तक उनके देश के हालात सुधर जाएंगे सभी बच्चों को भरपूर पौष्टिक खाना मिलेगा।मतलब हम अकेले नहीं हैं जो प्रधानमंत्री का विकास सुनते रहते हैंकि 2047 तक इंडिया विकसित देश बन जाएगा यहां दूध-दही की नदियां बहेंगी।

सरकार को उठाने चाहिए ये कदम

यूनिसेफ ने अपनी इस रिपोर्ट में भयानक बाल भोजन दरिद्रता को कम करने के उपाय भी सुझाए हैं। सरकारी नीतियों में बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले निश्चित लक्ष्य रखे जाएं आर्थिक विषमता कम की जाएबच्चों के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थ सभी जगह उपलब्ध कराए जाएंबाल-स्वास्थ्य सुविधाएं मज़बूत बनाई जाएं सामाजिक सुरक्षा ढांचा मज़बूत बनाया जाए और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े इकट्ठे करने में ईमानदारी बरती जाए। ग़रीबी के आंकड़े ईमानदारी से कैसे साझा किए जाएं? यूपी के एक स्कूल में पौष्टिक मिड डे मील योजना के तहत बच्चों को सूखी रोटी नमक के साथ परोसी जा रही थी। इस घटना को रिपोर्ट करने वाले पत्रकार को गिरफ़्तार कर लिया गया था।

अब यूनिसेफ को एक और शोध करना चाहिए। यूनिसेफ का उद्देश्य “ऐसी दुनिया बनाना जहां हर बच्चे के अधिकारों का सम्मान हो और जहां हर बच्चे का भरपूर विकास हो” क्या मौजूदा पूंजीवादी- साम्राज्यवादी व्यवस्था में पूरा हो सकता है? क्या यहां कोई भी योजना सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनती है? क्या देश का योजना आयोग या नीति आयोग कभी ऐसी योजनाएं बनाते नज़र आते हैं कि देश में कितने बच्चे भूखे हैं? उन्हें कौन-कौन से खाद्य पदार्थ चाहिए? उनका उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए और सबसे अहम उस उत्पादन का सही वितरण कैसे किया जाए?  ऐसी योजनाएं बनना क्या उस अर्थ व्यवस्था में मुमकिन है जहांं निजी क्षेत्र हो या सरकारी सारा उत्पादन महज़ मुनाफ़ा कमाने के लिए होता है? अगर इन बुनियादी बातों को दरकिनार कर हज़ारों लोग शोध रिपोर्ट से कागज़ काले कर रहे हैं तो क्या यह भूख से बिलखते सैकड़ों बच्चों के लिए अन्याय नहीं है ?अब सवाल ये है क्या सरकार जी को अब भी अपने विकास की गाथा गानी चाहिए खैर आपको क्या लगता है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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