Rafale Scam : चोर की धाड़ी में तिनका, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, चोर चोर मौसेरे भाई मिल बाट के खाए मलाई चोर शब्द से रिलेटेड जितनी भी कहावते है वो भी कम पड़ जाएगी अभी हम जिस मामले की चर्चा करने जा रहे है उसमे कहावते कम पड़ जाएगी लेकिन मामला खत्म नहीं होगा जी हाँ, आप अक्सर सुनते है दुनिया में डंका बज रहा है तो इस बार डंका फ़्रांस के जजों ने बजाया है विदेश की धरती से मोदी सरकार पर इन जजों ने जैसे आरोप लगाए है वाकेई दुनिया की किसी सरकार पर सायद ही ऐसे आरोप लगे होंगे
कितना भी छूटकारा पाने की कोसिस मोदी जी करले लेकिन राफेल का भूत मोदी जी का पीछा नहीं छोड़ रहा और सबसे बड़ी बात पेरिस की इनवेस्टिगेटिव वेबसाइट Mediapart ने राफेल पर जो जाच चल रही है उसको लेकर बहुत बड़ा खुलासा किया है इस रिपोर्ट में जो खुलासा किया गया है वो चोकाने वाला है और मोदी सरकार पर एक बड़ा सवाल पैदा करता है
Modi Sarkar ने राफेल डील में भ्रष्टाचार की जांच में बाधा डाली
पेरिस की इनवेस्टिगेटिव वेबसाइट Mediapart द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट में बताया गया है, खुलासा हुआ है, कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार फ्रांस के उन जजों के साथ सहयोग करने से इनकार कर रही है जिन्होंने 2016 में भारत को 7.8 बिलियन यूरो में दासो एविएशन द्वारा निर्मित 36 रफाल फाइटर जेट की बिक्री में हुए कथित भ्रष्टाचार के लिए हो रही जांच में भारत से मदद का अनुरोध किया है.
अगर आसान भाषा में समझे, तो सरकार फ़्रांस में चल रही रफेल डील की जांच में फ़्रांस की मदद नहीं कर रही है मदद करने से इनकार कर रही है दोस्तों रफेल डील सबसे बड़ा डिफेन्स स्कैम माना जाता है भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मोदी जी को एकदम क्लीन चिट दे दी थी राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में केंद्र सरकार को क्लीन चिट क्यों दी गई इस पर question मार्क हमेशा से लगा हुआ है जिसके बाद सरकार ने पूर्व न्यायधीश यानि जिन्होंने मोदी सरकार को क्लीन चिट दी थी वही फॉर्मर cji cheif जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई को बीजेपी ने बाद में राज्य सभा भेजा राज्यसभा के लिए मनोनीत किया तो जाहीर सी बात है उनके लिए गए फैसले जो सरकार के पक्ष मे गया इस पर तो सवाल उठेगा ही लेकिन फ़्रांस में इस मामले की जांच अब भी जारी है
रिपोर्ट के अनुसार, 25 जुलाई, 2023 को लिखे गए एक राजनयिक नोट में भारत में फ्रांसीसी राजदूत इमैनुएल लेनैन ने भारत के साथ आपराधिक मामलों पर सहयोग में आने वाली चुनौतियों का जिक्र किया था. उन्होंने नोट में कहा, ‘कई मामलों को हमारे भारतीय साझेदारों ने बहुत लंबी देरी से अक्सर अधूरे तरीके से निपटाया है.’
mediapart की जानकारी के अनुसार भारत सरकार ने वास्तव में इस मामले जो नवंबर 2022 में संदिग्ध ‘भ्रष्टाचार’, ‘अपने रसूख के इस्तेमाल’ और ‘पक्षपात’ की आपराधिक जांच के लिए दो फ्रांसीसी न्यायाधीशों द्वारा शुरू किया था को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए औपचारिक अनुरोध का पालन करने से इनकार कर दिया, रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय ने भारत में फ्रांसीसी दूतावास को ‘इसके सभी तरह की बातचीत/संचार बंद करने से पहले आठ महीने तक ध्यान भटकाने’ के लिए कहा था. इसलिए, भारत में फ्रांसीसी राजदूत, लेनैन, जो अब ब्राजील में फ्रांस के राजदूत हैं को इस मुद्दे पर राजनयिक नोट लिखने की जरूरत महसूस हुई.
क्या राफेल डील के भ्रष्टाचार में फिरसे फंस गए मोदी?
अपने नोट में उन्होंने यह भी लिखा था कि फ्रांसीसी सरकार ने ‘कुछ मामलों को आगे बढ़ाने’ की कोशिश के लिए 11 और 12 अगस्त को कोलकाता में ‘आगामी जी-20 भ्रष्टाचार विरोधी शिखर सम्मेलन के अवसर’ का इस्तेमाल किया. आपको बता दे की इससे पहले mediapart ने एक रिपोर्ट में बताया था कि कैसे फ्रांसीसी और भारतीय सरकारें एक बेहद संवेदनशील जांच को धीमा करने की मंशा रखती हैं जिसमें तीन सरकार : भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉ और उनके पूर्ववर्ती रहे फ्रांस्वा ओलांद- का नाम आ सकता है.
अक्टूबर 2018 में फ्रांसीसी इनवेस्टिगेटिव जजों ने भारतीय अधिकारियों से दासो एविएशन और कथित अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार रसूखदार रक्षा व्यवसायी सुषेन गुप्ता से जुड़े न्यायिक दस्तावेज भेजने का अनुरोध किया था. mediapart ने 2021 में बताया था कि इस बात के विस्तृत सबूत मिले थे कि ‘दासो ने 2016 में हुए राफेल सौदे को पाने के लिए गुप्त रूप से भारत के एक बिचौलिये सुषेन गुप्ता को कई मिलियन यूरो का भुगतान किया था.’
mediapart ने अपनी हालिया पड़ताल में बताया है कि फ्रांस में जांच कर रहे न्यायाधीशों को गुप्त दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से दो बार इनकार किया गया जिनमें से कई दस्तावेज उन्हें फ्रांसीसी रक्षा और विमानन कंपनी दासो की तलाशी के दौरान मिले थे. जैसा कि पहले बताया गया है कि सबसे पहले अक्टूबर 2018 में फ्रांसीसी इनवेस्टिगेटिव जजों ने भारतीय अधिकारियों से दासो और गुप्ता से संबंधित न्यायिक दस्तावेज भेजने को कहा था. दूसरा, फ्रांसीसी जजों ने दो जगहों- एक गुप्ता की कंपनियों में से एक का दफ्तर,, दूसरा दासो रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) के मुख्यालय की तलाशियां लेने को भी कहा, जहां वे खुद मौजूद रहना चाहते थे. डीआरएएल दासो और रिलायंस समूह की संयुक्त कंपनी है, जिसे अरबपति कारोबारी अनिल अंबानी चलाते हैं.
द हिंदू ने फरवरी 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमे कहा गया था कि मोदी सरकार ने अंतिम अनुबंध पर दस्तखत करने से ठीक पहले 2016 में रफाल सौदे से ‘भ्रष्टाचार विरोधी क्लॉज़’ हटा दिए थे. अखबार ने बताया था कि भारतीय पक्ष की नेगोसिएशन टीम के सदस्यों की आपत्तियों के बावजूद ऐसा किया गया था. न्यूज़ वेबसाइट द प्रिंट ने जुलाई 2023 में एक रिपोर्ट में बताया था कि फ्रांसीसी विमानन प्रमुख अपने संयुक्त उद्यम डीआरएएल में अंबानी की हिस्सेदारी खरीदना चाह रही है. जबकि संयुक्त उद्यम में फ्रांसीसी फर्म की 49% हिस्सेदारी है और 51% रिलायंस डिफेंस के पास है.
दोस्तों इसमे एक रोचक पहलु यह है कि भारत द्वारा रफेल सौदे पर हस्ताक्षर करने के बमुश्किल दो सप्ताह बाद दासो और रिलायंस ने 3 अक्टूबर 2016 को अपने संयुक्त उद्यम और डीआरएएल की घोषणा की थी. mediapart अपनी एक रिपोर्ट में यह भी बता चुका है कि कैसे अंबानी ने साल 2015 में फ्रांस से टैक्स में छूट हासिल की थी. अपनी ताज़ा रिपोर्ट में mediapart ने कहा कि नई दिल्ली में फ्रांसीसी राजदूत ने न्यायिक अनुरोध के संबंध में भारतीय अधिकारियों से सहयोग में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी.
मोदी सरकार की टालमटोल की रणनीति, जांच से इनकार
mediapart की रिपोर्ट कहती है कि यह मामला विशेष रूप से मोदी सरकार की इस इच्छा को दिखाता है कि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रफाल जेट की बिक्री पर भ्रष्टाचार की फ्रांसीसी न्यायिक जांच किसी नतीजे पर न पहुंचे. नतीजन जांच करने वाले जजों के सामने बड़ी बाधा है क्योंकि उनके पास क्लासिफाइड फ्रांसीसी दस्तावेज और भारतीय न्यायिक दस्तावेजों दोनों नहीं है जो गुप्त कमीशन के भुगतान को साबित कर सकते हैं. फ्रांस में भी इस केस को लेकर जजों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
दोस्तों अब सवाल ये उठता है आखिर क्यों मोदी सरकार जाच में मदद करने से इनकार कर रही है अगर आपको क्लीन चिट मिली हुई है आप साफ है तो क्यों मदद करने से इनकार किया जा रहा है आखिर किस बात का डर सता रहा है मोदी जी को अपनी राय कमेन्ट कर जरूर बताएँ