Lunch in Rs. 1 only: दोस्तों राजधानी दिल्ली में एक ऐसी रसोई है जहां पर जरूरतमंदों को मात्र 1 रुपए में पूरी थाली मिलती है। दिल्ली के रहने वाली परवीन कुमार गोयल यह नेक काम कर रहे है। परवीन कुमार नांगलोई इलाके में शिव मंदिर के पास श्याम रसोई चलातेे है।
दोस्तों सोशल मीडिया पर उनके इस नेक काम की सभी लोग तारीफ कर रहे है। कुछ लोगों इनको भगवान का फरिश्ता बताते कह रहे है कि इस पुण्य के लिए उनको बहुत सारी दुआएं भी दे रहे है,,
1 रुपए में भरपेट खाना श्याम रसोई की खासियत
Lunch in Rs. 1 only: 1 रुपए में भरपेट खाना श्याम रसोई की खासियत है कि यहां पर कोई भी शख्स भूखा नहीं जाता है। सिर्फ एक रुपए में वो अपने पेट भरकर खाना खा सकते है। एक रुपये भी इसलिए लेते हैं ताकि लोग खाने को मुफ्त समझकर बर्बाद न करें। 51 साल परवीन ने बताया कि लोग तरह-तरह से दान करते हैं। कोई आर्थिक रूप से मदद करता है, तो कोई अनाज/राशन देकर। हालांकि, पहले वो 10 रुपये में एक थाली देते थे। लेकिन हाल ही ज्यादा लोगों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने दाम घटाकर 1 रुपए कर दिया है। उनकी इस रसोई में हर दिन करीब 1,000 लोग खाना खाते हैं।
Lunch in Rs. 1 only: दुनिया में कोई भी इंसान भूखा ना सोए
परवीन चाहते हैं कि दुनिया में कोई भी इंसान भूखा ना सोए। दोस्तों यहां अगर कोई चाहे तो ‘श्याम रसोई’ से किसी बीमार/जरूरतमंद के लिए Lunch in Rs. 1 only खाना पैक करवाकर भी ले जा सकता है। लेकिन इसकी एक शर्त है, वो शर्त ये है की खाना सिर्फ तीन लोगों का ही पैक किया जाएगा। इसके पीछे भी कारण है वो यह है कि उस खाना का दुरुपयोग न हो। सोशल मीडिया पर परवीन के इस नेक काम की खूब तारीफ हो रही है।
50 किलो आटा, 150 किलो चावल और सब्जियां लगती हैं
Lunch in Rs. 1 only: दोस्तों बता दे की यहां हर रोज 1 हजार लोगों के लिए खाना बनता है. 50 किलो आटा, 150 किलो चावल और सब्जियां लगती हैं. श्री श्याम रसोई में धर्म जाति का कोई भेदभाव नहीं होता और तो और यहां पर मीडिल क्लास के आदमी भी खाना खाने आ सकते है,,श्री श्याम रसोई को चलाने में पूरी दिल्ली और दिल्ली के बाहर के लोग भी सहयोग करते हैं. हर रोज यहां पर बहुत सारे लोग राशन दान करके जाते हैं,,दिल्ली में चल रही श्री श्याम रसोई को लेकर आपका क्या कहना है आप हमे कमेंट बॉक्स में कमेंट कर जरूर बताएं और बाकि खबरों के लिए देखते रहिये जनता की आवाज
जिनके पास 1 रुपए भी न हों, वे भी नहीं लौटते
Lunch in Rs. 1 only: साल के 365 दिन ये रसोई चलती है और किसी को भूखा नहीं लौटाया जाता. यहां तक कि अगर किसी के पास देने के लिए 1 रुपए भी न हो तो उसे भी प्रेम से बिठाकर परोसा जाता है. लोकप्रियता बढ़ने के साथ आसपास के लोग और कॉलेज के स्टूडेंट भी आकर खाना परोसने में मदद करने लगे हैं ताकि काम आसान हो सके.
तड़के शुरू हो जाता है खाना पकना
नांगलोई के इस हिस्से में दिन की शुरुआत बर्तन-भगोनों के साफ होने और सब्जियों की महक से होती है. सुबह के 11 बजे से यहां खाने के लिए लोग आ चुके होते हैं. भारी भीड़ में किसी को ज्यादा इंतजार न करना पड़े, इसके लिए खाना पहले ही तैयार रखना होता है. लिहाजा तड़के ही कई रसोइये काम में जुट जाते हैं. सबके लिए काम तय हैं. कोई सब्जियां तराशता है तो कोई उसे पकाने का काम लेता है.
कई तरीकों से खाना पहुंचा रहे हैं
केवल खाने के लिए आने वालों को ही भरपेट नहीं परोसा जाता, बल्कि प्रवीण या उनके कर्मचारी रिक्शा या ऑटो से आसपास के इलाकों जैसे इंद्रलोक और साईं मंदिर जाते हैं और वहां जरूरतमंद लोगों को खाना पहुंचाते हैं. यहां तक कि अगर कोई चाहे तो बीमार या किसी भी जरूरतमंद के लिए खाना पैक करवाकर भी साथ ले जा सकता है, हालांकि इसकी शर्त ये है कि केवल तीन लोगों के लिए एक साथ पार्सल होगा. इसका मकसद ये है कि खाने की बर्बादी रोकी जाए और जरूरतमंद तक खाना पहुंचे. बकौल प्रवीण, इस तरह से देखें तो श्याम रसोई से रोज 2000 लोगों का पेट भर रहा है.
गुणवत्ता पर खास ध्यान देते हैं
खाना पकाने और परोसने के लिए एक गोदाम को खाली करके उसे रसोई और डायनिंग का रूप दिया गया. नीचे दरी बिछी होती है, जिसपर सब साथ बैठकर खाते हैं. रोटियां, दाल, सब्जी और हलवा रोज परोसा जाता है. हमेशा मौसमी सब्जियां ही पकाई जाती हैं. कुल मिलाकर पूरा खाना लगभग वैसा ही होता है, जैसे हम-आप घरों में खाते हैं, स्वादिष्ट और सेहतमंद.
लोग पैसों से लेकर राशन भी कर रहे दान
बिजनेस परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रवीण अपने बारे में खास जानकारी नहीं देते हैं लेकिन ये बात सामने आ गई कि वे अपना काम छोड़कर खुद को पूरी तरह से इस रसोई में समर्पित कर चुके. रसोई चलाने के लिए रोजना लगभग 40000 से 50000 का खर्च आता है. लोग अब उनकी मदद के लिए स्वेच्छा से उन्हें राशन, पैसा आदि देते हैं.
प्रवीण ये खर्च कहां से निकालते हैं
इसके लिए लोग दान करते हैं. छोटी से लेकर बड़ी दानराशि खबर फैलने के बाद से आने लगी. यहां तक कि बहुत से लोग पैसों की बजाए सूखा अन्न पहुंचाते हैं ताकि दान का सही इस्तेमाल होने की तसल्ली रहे. अब कई राज्यों से सूखा राशन आने लगा है.