Parliament Session: इस बार का संसद सत्र बढ़ा ही दिलचस्प होगा 10 साल बाद एक मजबूत विपक्ष की उपस्थिति में पीएम नरेंद्र मोदी किस तरह का प्रदर्शन करते हैं। ये देखने की बात होगी इस बार की लोकसभा थोड़ी बदली-सी नजर आएगी। PM नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पहली बार BJP बहुमत से नीचे सिमट गई है। सहयोगी दलों को मिलाकर भी संख्या 293 ही पहुंची है। दूसरी तरफ विपक्ष इस बार 234 सीटों के साथ काफी मजबूत है यानि इस बार लोकसभा में सरकार की वैसी धमक नहीं रहेगी जैसी पहले हुआ करती थी अब मोदी जी की मनमानी नहीं चलेगी अब मोदी जी अपने मन की बात कैसे करेंगे 18वीं लोकसभा मोदी सरकार और विपक्ष दोनों के लिए अग्नि परीक्षा वाली होगी।
मोदी सरकार की नहीं चलेगी मनमानी
दोस्तों जब विपक्ष कमजोर था तो मोदी सरकार की अपनी ही मनमानी चलती थी कोई भी बिल लाती थी और ध्वनि मत से पास करा लेती थी लेकिन इस बार एनडीए सरकार को बिल पास कराने मे काफी मुश्किलों का सामना करना पड सकता है और शायद बिल पास भी न हो
दोस्तों बिल आना तो बाद की बात है सरकार के लिए पहली चुनौती ही सफलता पूर्वक पूर्ण बजट पेश करने की होगी। सिर्फ विपक्ष का दवाब नहीं होगा बल्कि अपने सहयोगी दलों को भी संतुष्ट करना पड़ेगा। भले ही एनडीए के बैनर तले सभी सहयोगी दलों ने चुनाव लड़े हों लेकिन सबकी विचारधारा अलग है और उनके आर्थिक व सामाजिक सरोकार भी एक जैसे नहीं हैं। इसलिए यह बजट सिर्फ केंद्र सरकार की योजनाओं प्राप्तियों और व्ययों का विस्तार नहीं होगा बल्कि एनडीए के घटक अपने अपने आर्थिक एजेंडे को भी इसमें देखना चाहेंगे।
जहां तक बीजेपी के मंत्रियों और प्रधानमंत्री मोदी जी के मन की बात है तो वे इस बजट में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने और फिर 2047 तक देश को ‘विकसित भारत’ में बदलने का रोड मैप प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगे और उसी के अनुरूप सुधारों की घोषणा भी करना चाहेंगे।
चुनाव में बीजेपी और पीएम मोदी को किसानों की दयनीय हालत रोजगार सृजन में कमी और पूंजीगत व्यय की गति गिरने पर काफी कुछ सुनना पड़ा था और इसी बजट में इन मुद्दों पर सुधार करना आवश्यक होगा। खास कर तब जब महाराष्ट्र हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में अगले कुछ महीनों में ही चुनाव होने वाले हैं। इसलिए इस बजट में राजद की नौकरी के नारे के बराबर कोई स्कीम लाने का दवाब नीतीश कुमार जरूर डालेंगे। पर वित्त मंत्रालय की यह बात भी जरूर सुनी जाएगी कि कोई चुनावी वायदा इस तरह ना पूरा किया जाए कि राजकोषीय घाटा लक्ष्य के बाहर चला जाए।
इस बार बजट में क्या होगा ?
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इस तीसरी सरकार के गठन से पहले ही 100-दिवसीय एजेंडे बना लिए थे। अब उनको लागू करने के लिए बजट में प्रावधान जरूर किये जाएंगे। करों में सुधार बुनियादी ढांचे का विकास डिजिटल नवाचार और बेहतर शासन व्यवस्था के लिए केंद्रीय बजट में आवश्यक धन का इंतजाम जरूर किया जाएगा। इसी बजट में पीएम मोदी के सामने यह भी मांग रखी गई है कि बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देते हुए बजट से अधिक व्यय आवंटन किया जाए। यही नहीं बिहार को औद्योगिक राज्य बनाने के लिए भी पीएम मोदी पर दवाब होगा चुनाव के दौरान चीनी मिल चालू करने किसी खास उत्पाद के लिए बिहार में विशेष औद्योगिक क्षेत्र बनाने और ढांचागत परियोजनाओं का विस्तार करने की भी मांग है।वही आंध्रप्रदेश इस समय कर्ज में डूबा हुआ है। 2019 से 2023 तक इसका कर्ज 80 प्रतिशत बढ़ा है।
जाहिर है चंद्रबाबू नायडू को केंद्र सरकार से बहुत सी उम्मीदें होंगी। वह भी पीएम मोदी से आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जा मांग सकते हैं। इतनी सारी सहयोगी दलों की उम्मीदों और विपक्ष के आरोपों के दबाव के बाद पीएम मोदी के नेतृत्व वाली इस सरकार का पहला बजट किस तरह का होगा इसका इंतजार पूरी दुनिया कर रही है।
इस बार कौन -से बिल ला सकती है सरकार ?
तो चलिए जानते है इस बार सरकार कौन से बिल लाने की तयारी में है
बीमा सुधार कानून : बीमा संशोधन विधेयक को एक क्रांतिकारी कानून माना जा रहा है। बीमा क्षेत्र को बड़े सुधारों के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है। जिस तरह से गठबंधन सरकार है और FDI की सीमा 74% तक करने की बात कही गई है उससे लगता है कि यह उस रूप में पास नहीं हो पाएगा जैसा BJP सरकार ने सोचा है।
आपको बता दे की नए कानून के तहत बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% किया जाएगा ताकि फॉरेन इन्वेस्टमेंट को आकर्षित किया जा सके। इसके अलावा बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) को ताकतवर बनाया गया है। ऐसा इसलिए ताकि वे अधिक कुशलता से बीमा कंपनियों की निगरानी कर सकें और कस्टमर के अधिकारों का ध्यान रख सकें।दरअसल कुछ पॉलिटिकल पार्टीज और अन्य संगठनों का मानना है कि बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने से घरेलू बीमा कंपनियों पर असर पड़ेगा। भारतीय ग्राहक के हितों की अनदेखी होगी। ये भी तर्क दिया जा रहा है कि विदेशी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव से बीमा क्षेत्र का कंट्रोल भारत के हाथ से निकल जाएगा। कुछ लोग मानते हैं कि ये कदम प्राइवेटाइजेशन की तरफ है। ऐसे में इस बिल को पास कराना NDA के लिए आसान नहीं होगा।अब आते है डिजिटल इंडिया एक्ट पर
डिजिटल इंडिया एक्ट: इस एक्ट को लेकर पिछली बार IT राज्यमंत्री रहे राजीव चंद्रशेखर ने खूब प्रचार किया था। उन्होंने मीडिया को खुलकर इसके फायदे बताए थे। दुर्भाग्य से वे चुनाव हार गए हैं इसलिए वे इस कानून को पेश नहीं कर पाएंगे। मोदी सरकार इस कानून को 23 साल पुराने IT एक्ट की जगह लाना चाहती है।सरकार का कहना है कि IT एक्ट में इंटरनेट शब्द नहीं है। नए कानून में साइबर सुरक्षा AI गोपनीयता और अन्य जरूरी क्षेत्रों पर ध्यान देने की बात की गई है। कानून तोड़ने पर दस साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान से विपक्ष डरा हुआ है।
सरकार को भले ही लगता है कि वो अच्छा करने जा रही है लेकिन विपक्ष उससे सहमत नहीं है। विपक्ष को लगता है कि इस कानून की आड़ में सरकार उन लोगों को दबाएगी जो इंटरनेट पर उसकी आलोचना करेगा। सरकार इसका मसौदा इस शीतकालीन सत्र से पहले जारी कर सकती है। हालांकि तगड़े विपक्ष के चलते इसे शीतकालीन सत्र में पास कराना आसान नहीं होगा। अब बात करते है बीज विधेयक की
बीज विधेयक 2019: NDA सरकार बीज विधेयक 2019 को लाने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रही है। पिछली सरकार के दौरान हुए किसान आंदोलन में इस बिल का भी जोरदार विरोध किया गया था। सरकार इसे बीज बिल 1966 की जगह लाना चाहती है। सरकार का मानना है कि इससे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज मिलेंगे। खराब और नकली बीज बनाने वाली कंपनियां खत्म हो जाएंगी।बीज विधेयक 2019 खराब क्वालिटी के बीज बेचने वाली कंपनी पर जुर्माना 5 हजार रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया गया है। विपक्ष और किसान विरोध कर रहे किसानों का मानना है कि ये बिल छोटे किसान और छोटी कंपनियों के खिलाफ है। इससे बड़ी कंपनियों को ही लाभ होगा।
क्योंकि छोटा किसान महंगा बीज कैसे खरीदेगा। छोटी कंपनियां सरकार के मानक पर खरी उतरेंगी ही नहीं। जब ऊपर से ही बीज महंगा आएगा तो छोटा किसान कैसे खरीदेगा। तमाम विरोधों के बीच भी अगर सरकार इस बिल को लाती है तो इसे पास कराना टेढ़ी खीर होगा। सहयोगी दल भी इस पर दूरी बना सकते हैं क्योंकि किसान इसके विरोध में हैं। अब चलते है बिजली बिल की ओर
बिजली (संशोधन) विधेयक 2022: 8 अगस्त 2022 में बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया गया था। यह दोनों सदनों में पास नहीं हो सका है। संसद में अब विपक्ष के बहुत मजबूत होने के कारण यह बिल वैसे तो पास नहीं हो पाएगा जैसा सरकार चाहती है।इस बिल पर विपक्ष गैरबीजेपी शासित राज्यों और सरकारी बिजली कंपनियों ने विरोध दर्ज कराया है। इस बिल के तहत एक ही क्षेत्र में कई बिजली कंपनियों को लाइसेंस दिए जाएंगे। जैसे आप मोबाइल के लिए अपनी मर्जी का नेटवर्क चूज करते हैं। ऐसे ही बिजली कंपनी भी चूज कर सकेंगे।
विपक्ष का मानना है कि बिल में ये बदलाव बिजली आपूर्ति और कीमत तय करने के नागरिकों के अधिकारों में घुसपैठ कर रहा है। इस बिल पर चर्चा होनी चाहिए। निजी कंपनियां कुछ शुल्क देकर मुनाफा कमाएंगी और सरकारी कंपनियां दिवालियां हो जाएंगी। विपक्ष के तेवर देखकर लगता है कि ये बिल पास होने में NDA को खूब जोर लगाना होगा। विपक्ष की बात भी माननी होगी।आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ