Kolkata Doctor Rape Murder Case: ममता सरकार को बचाने के लिए पुलिस ने पैरेंट्स को देनी चाही घूस!
Kolkata Doctor Rape Murder Case: दोस्तों महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने विधानसभा में एंटी रेप बिल पेश किया जिसके बारे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी टीम का कहना है कि ये केंद्र सरकार के नये कानून से भी कहीं ज्यादा सख्त कानून है – लेकिन सवाल है कि क्या वास्तव में महिलाओं के खिलाफ अपराध पर काबू पाने के लिए सख्त कानून की ही जरूरत है? नये कानून की जरूरत तब पड़ती जब शुरुआती कार्रवाई सही तरीके से हुई होती और कानूनी प्रक्रिया की वजह से न्याय मिलने में देर हो रही होती – लेकिन कोलकाता रेप-मर्डर केस में तो पुलिस के शुरुआती एक्शन पर ही सवाल उठाया जा रहा है.ममता सरकार पुलिस को बचाने में जुटी है पुलिस ममता सरकार को बचाने में जुटी है यही चल रहा है बस और अब तो ममता की पुलिस ने हद ही पार करदी पीडिता के परिवार वालों का चुप करने के लिए घूस देने लगी?
मुंह बंद रखने के लिय रिश्वत देनी चाही
आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर की रेप के बाद हत्या मामले में पीड़ित परिवार ने बुधवार (4 सितंबर 2024) को पुलिस पर बड़ा आरोप लगाया. पीड़िता के पिता ने कहा कि पुलिस ने न सिर्फ उनकी बेटी के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करके मामले को दबाने की कोशिश की बल्कि हमें रिश्वत देने की भी कोशिश की.पीड़िता के पिता ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि पुलिस ने शुरू से ही मामले को दबाने की कोशिश की. हमें शव देखने नहीं दिया गया और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाने तक हमें थाने में इंतजार करना पड़ा. बाद में जब शव हमें सौंपा गया तो एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने हमें पैसे की पेशकश की जिसे हमने तुरंत अस्वीकार कर दिया. पीड़िता के माता-पिता ने बुधवार रात जूनियर डॉक्टरों के साथ आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में विरोध-प्रदर्शन में भाग लेते हुए अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग की.
ऐसा है हाल-ए-बंगाल?
ममता बनर्जी खुद को स्ट्रीट फाइटर बताती हैं और कोलकाता रेप-मर्डर केस में भी उनका ये रूप देखने को मिला है. हैरानी की बात ये है कि ऐसे मामलों अक्सर वो पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की जगह अपने राजनीतिक बचाव की लड़ाई लड़ती नजर आती हैं – और वो भी बहुत ही असंवेदशील तरीके से.आखिर ममता बनर्जी को ऐसा क्यों और कब लगा कि कोलकाता रेप-मर्डर केस को लेकर देश भर के डॉक्टर और बंगाल के लोगों का गुस्सा कमजोर कानून को लेकर है?
ममता बनर्जी के नये कानून के हिसाब से सजा तो सुनाई जा सकती है लेकिन सवाल इस बात पर भी उठ रहे हैं कि क्या त्वरित न्याय का वो तरीका व्यावहारिक भी है? अगर कानून के हिसाब से हड़बड़ी में सजा सुनाई गई तो क्या वास्तव में इंसाफ हो पाएगा? और अगर प्रक्रिया सही नहीं रही तो क्या बड़ी अदालतों से हमलावर छूट नहीं जाएगा? खतरा तो बेगुनाह के सजा पाने का भी है. लोगों में गुस्सा भी पुलिस के रवैये को लेकर है न कि किसी सख्त कानून के न होने को लेकर. जिस तरह से पुलिस ने शुरू में खुदकुशी बता कर मामले को रफा दफा करने की कोशिश की. क्या पुलिस को मालूम नहीं हो गया होगा कि मामला आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का है – और वो भी बलात्कार के बाद हत्या का. जो पुलिस बलात्कार और हत्या के मामले को आत्महत्या करार देती हो उससे केस की जांच कराये जाने का क्या मतलब है? ये ठीक है कि ममता बनर्जी ने अपनी तरफ से एक डेडलाइन रखी थी और कहा भी था कि पुलिस केस सॉल्व नहीं कर पाएगी तो सीबीआई जांच की सिफारिश कर देंगी – लेकिन उससे पहले ही कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया.
ममता सरकार क्यों बचा रही संदीप घोस को ?
क्या ममता बनर्जी को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल रेप-मर्डर केस में गुमराह किया गया? क्या कोलकाता पुलिस ने ममता बनर्जी को गुमराह किया या ममता बनर्जी के भरोसेमंद अफसरों में से किसी ने? ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर को खुदकुशी साबित करने में प्रिंसिपल और पुलिस दोनो की भूमिका एक जैसी नजर आती है – और ताज्जुब की बात ये रही कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार दोनो की हरकतों पर सीधे सीधे पर्दा डालने में जुटी रही. अगर ऐसा नहीं था तो आनन-फानन में संदीप घोष को आरजी कर मेडिकल कॉलेज से ट्रांसफर कर कलकत्ता मेडिकल कॉलेज का प्रिंसिपल क्यों बनाया गया?
वो तो कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने प्रिंसिपल के कमरे में ताला जड़ दिया और विरोध प्रदर्शन करने लगे तब सरकार होश में आई. केस की जांच कर रही सीबीआई ने संदीप घोष को गिरफ्तार कर लिया है. अगर मामला खुदकुशी का ही था फिर भी जांच तो उसकी भी होनी चाहिये थी और तब तक संदीप घोष को वेटिंग में भी रखा जा सकता था. तत्काल प्रभाव से प्रिंसिपल बनाने की हड़बड़ी क्यों थी?
ये सब देखकर तो साफ साफ समझ में आता है कि ममता बनर्जी की सरकार के आला अफसर प्रिंसिपल के अपराध और पुलिस की ढिलाई पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे थे – और पूरे प्रकरण में अभिषेक बनर्जी का सीन से ही गायब हो जाना अलग से शक पैदा करता है. खबर आई थी कि ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पूरे मामले को हैंडल किये जाने के तरीके से नाराज थे और कहीं भी वो ममता बनर्जी के साथ खड़े नजर नहीं आये. बाद में टीएमसी नेता कुणाल घोष पीड़ित परिवार से मिलने भी गये थे तो माना कि उनकी तरफ से चूक हुई है.
मामलों की लीपापोती करती है ममता सरकार
दोस्तों कोलकाता रेप-मर्डर केस ही नहीं रेप के पुराने मामलों में भी ममता बनर्जी कभी वामपंथियों तो कभी भाजपा पर आरोप मढ़ती रही हैं. 2012 में पार्क स्ट्रीट रेप केस से लेकर आरजी कर मेडिकल कॉलेज रेप-मर्डर केस तक ममता बनर्जी का रवैया बिलकुल एक जैसा ही रहा है. और तो और कोलकाता रेप-मर्डर केस को लेकर डॉक्टरों और अन्य लोगों के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ मुख्यमंत्री होने के बावजूद ममता बनर्जी भी सड़क पर उतर आती हैं और वो भी अपनी टीम के साथ मार्च करने लगती हैं. जब सरकार खुद की राज्य खुद का फिर मार्च क्यों जनता को गुमराह करने के लिए अपनी नाकामी छिपाने के लिए
2013 में कमदुनी गैंग रेप की एक घटना के 10 दिन बाद ममता बनर्जी जब इलाके में गईं तो वहां की महिलाओं का गुस्सा झेलना पड़ा. ममता बनर्जी को देखते ही एक महिला चिल्ला पड़ी थी ‘आप क्या अपना चेहरा दिखाने यहां आई हैं?’ममता बनर्जी ने उसमें भी राजनीति खोज डाली थी और अपने खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को राजनीतिक विरोधी करार दिया था. ममता बनर्जी ने कहा था ‘यहां के लोग सीपीएम के समर्थक हैं… मुझे ये कहते हुए दुख हो रहा है कि सीपीएम इस मामले में राजनीति कर रही है.’ तब ममता बनर्जी का ये भी दावा रहा कि उस मामले में गिरफ्तार किये गये सभी व्यक्ति सीपीएम के समर्थक थे.’
ऐसे ही 2021 में खबर आई थी कि पूरे पश्चिम बंगाल के पुलिस थानों में बलात्कार की शिकायतें दबाई जा रही हैं तब भी ममता बनर्जी की चुप्पी ने सबको हैरान किया था. पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में एक नाबालिग के साथ गैंगरेप की खबर आने के बाद ममता बनर्जी के बयान पर खूब विवाद हुआ था. ममता बनर्जी पूछ रही थीं आपको कैसे पता कि उसके साथ रेप हुआ? क्या वो प्रेग्नेंट थी? या लव अफेयर का मामला था? या फिर वो बीमार थी?’ये ममता बनर्जी के पुराने स्टैंड और बयान ही हैं जो महिलाओं के खिलाफ पश्चिम बंगाल में हुए अपराधों में तृणमूल कांग्रेस नेता के स्टैंड पर सवाल खड़े करते हैं
कानून सख्त करने से कुछ बदलेगा ?
निर्भय कांड मे दोषियों को सजा “फांसी” सालों बाद दी जा सकी। यानि दोषियों की गिरफ्तारी और जल्दी सुनवाई की मांग तो की जा सकती है और उसे सरकार पूरा भी कर सकती है पर सरकार किसी भी कानून द्वारा आरोपी को सजा नहीं दे सकती।अब यह स्थिति सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को मालूम भी होती है परंतु राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए वे अपने भाषणों में आरोपियों को तुरंत लटकाये जाने की मांग करते रहते हैं। अब ऐसे नेताओं से कौन पूछे कि किस विधि से आंदोलनकारियों की मांग को तुरंत पूरा किया जा सकता है ? वे कभी भी इस सवाल का जवाब नहीं दे पाएंगे। क्यूंकि भारत में न्याय की एक प्रक्रिया है जो सभी देश के नागरिकों पर लागू होती है। अदालत के 4 चरण होते है पहला मजिस्टरेयत फिर सेशन कोर्ट तब हाई कोर्ट और अंत में सुप्रीम कोर्ट। सेशन कोर्ट दोषों को फांसी की सजा सुना तो सकता है परंतु उस पर मुहर हाई कोर्ट को लगाना जरूरी है।अर्थात हाई कोर्ट तक मामले की सुनवाई तो होगी ही। और इनमे लगता है टाइम तो बार बार क्यू दोषी को तुरंत फांसी देने का आश्वासन और कानून ? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ओक ने अभी अपने एक भाषण में कहा भी है कि भीड को तुरंत न्याय देने के बय¬ान बिल्कुल गलत है। यह न्याय प्रक्रिया को चोट पँहुचाते हैं।
निर्भया कांड के बाद देश में ऐसे अपराधों के लिए सजा को सख्त बनाया गया था। उसके बाद बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए और भी सख्त पोक्सो जैसा कानून बना।उन अधिनियमों का तजुर्बा क्या है? क्या उनसे जुर्म पर काबू पाने में तनिक भी मदद मिली? आप ही बताइए बस अब यही रास्ता ममता बनर्जी की सरकार ने अपनाया खैर आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ