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Madhya Pradesh: Modi ka Chehra ही अब BJP

Madhya Pradesh Election

Madhya Pradesh Election

Madhya Pradesh: पांच राज्यों के चुनावों की तारीखों का, एलान होते ही ,सभी दल और नेता ,अपने अपने दावों, वादों और इरादों के साथ, मैदान में डट गए हैं। इन चुनावों को अगले साल, अप्रैल-मई में होने वाले ,लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है, 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव, (Modi ka Chehra) नरेंद्र मोदी की राजनीति का नया मोड है, या यूं कहे आखिरी मोड है क्योंकि हिसाब से 2023-24 के चुनावों को, उनके कार्यकाल के आखिरी चुनाव मानना चाहिए, क्योंकि यह सोचना संभव नहीं ,कि 2028-29 का चुनाव भी, उनके चेहरे पर होंगे? उनका नारा है, चेहरा नहीं कमल, लेकिन ,बावजूद इसके, वे (BJP) बीजेपी, या संघ में, किसी चेहरे की जगह बनने ही नहीं दे रहे है, सभा में उन्होने दो टूक कहा, चुनाव में सिर्फ़ एक ही चेहरा, कमल है, हमारा उम्मीदवार सिर्फ़ कमल है, कमल को जिताना है

विधानसभा चुनावों में Modi बनाम मुद्दे का यह पहला ट्रायल

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ और तेलंगाना में कही भी बीजेपी के किसी भी पुराने नेता या मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया न मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का जिक्र किया और न वसुंधरा राजे का इसका मतलब है दोस्तों 2024 के अपने आखिरी चुनाव में वे बीजेपी को एकेश्वरवादी मतलब एक अकेले मोदी की पार्टी बना रहे है । बहुत ही बारीक और बड़ा मामला है यह मोदी की सभाओं पर गौर करें उनका मैसेज क्या है? मैं मतलब कमल 2014 में चुनाव जीतने के बाद, लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी आदि बुजुर्ग चेहरो हाशिए पर ला दिए और 2019 के चुनाव में बाकि सभी शूरवीर, नरेंद्र मोदी के पैदल सिपाही बनकर रह गए और अब 2023-24 में क्षेत्रीय नेता और पैदल सेना, सब खत्म अब सब एकेश्वर की लीला के मात्र दर्शक है

कमल की आड मे सभी चेहरे लुप्त होते हुए कोई आश्चर्य नहीं है लाख टके का सवाल है कि शिवराजसिंह चौहान, वसुंधरा राजे, रमनसिंह या एक्सवाईजेड कोई भी चुनावी प्रक्रिया का भागीदार है और इसके आगे क्या योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा, और देवेंद्र फडनवीस जैसे चेहरों की, वही दशा नहीं होगी जो आज भोपाल, जयपुर, या हैदराबाद में बीजेपी के चेहरों की दिख रही है?

बेचारे केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ना पड रहा है तो पुराने विधायक नए चेहरों से रिप्लेस हो रहे है अब ये मत कहना की यह पीढीगत परिवर्तन है या जनरेशन gap है सत्तर पार के मोदीजी पार्टी को चालीस साल की उम्र की बनाने मे लगे है इसका मतलब ये भी पक्का है की जिस भी प्रदेश में भाजपा जीतेगी वहा मौजूदा या पिछला सीएम दोबारा शपथ नहीं लेगा अब प्रदेश की बीजेपी सरकारों का चरित्र, चेहरा और चाल वैसी ही होंगी जैसे गुजरात में है

चुनाव पीएम मोदी के चेहरे और लोकप्रियता पर लड़ना तय

इस चुनाव में नरेंद्र मोदी वह सब बोल रहे है और कर रहे है जिससे लोगों का ध्यान असल मसलों और रोजमर्रा की जिंदगी से बंटा रहे लेकिन विपक्ष और बीजेपी की एप्रोच में एक फर्क है कि विपक्ष जहां ओबीसी, रैवडियों से भाजपा के वोट तोड़ सकने के ख्यालों में है वही मोदी-शाह की टीम देश की सुरक्षा, विश्व में इमेज, नई -नई झांकियों, वर्ग-वर्ण के छोटे-बड़े समूहों जैसे महिलाओं, नौजवानों, किसान, आदि को माइक्रो स्तर पर काम करता है, और खासतौर से उन पर जो बीजेपी विरोधी उम्मीदवारों को जा सकते है

हालांकि, हर चुनाव की परिस्थिति मुद्दे और वॉटर्स की मानसिकता अलग अलग होती है, लेकिन फिर भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव विशेषकर उत्तर भारत के तीनों राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को उन मुद्दों का ट्रायल रन जरूर माना जा सकता है जिनको धार देकर सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी गठबंधन इंडिया विशेषकर कांग्रेस लोगों के बीच जा रही है,क्योंकि अक्सर जब विपक्षी इंडिया गठबंधन से पूछा जाता है कि अगले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उसका नेता कौन होगा

राजनीति पार्टी के पास कोई असल चुनावी मुद्दा नहीं

मुद्दों के अलावा इस बार जिस तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा ने बिना कोई चेहरा दिए पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और लोकप्रियता पर लड़ना तय किया है इससे ये चुनाव मोदी की लोकप्रियता की भी अग्निपरीक्षा हैं। पिछली बार भले ही प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे जोरशोर से प्रचार किया था लेकिन तब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान,छत्तीसगढ में रमन सिंह और राजस्थान में वसुधरा राजे की सरकारें थीं और उनके चेहरे भी थे। इसलिए इन राज्यों में पार्टी की हार का ठीकरा इन तीनों की विफलताओं पर फूट गया था लेकिन इस बार सीधे तौर पर मोदी का मुकाबला कमलनाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलौत के अलावा राहुल गांधी और खरगे से भी है,

और देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है की मोदी-बीजेपी और कांग्रेस या विपक्ष सब जाने-अनजाने में लोगों के उन मसलों को उभरने ही नहीं दे रहे जिनकों ले कर हमेशा पहले हर चुनाव हुआ करते थे जैसे भ्रष्ट्राचार, महंगाई, बेरोजगारी भाजपा को चेहरा मुक्त बनाने के अलावा मोदी जी एक काम और कर रहे है विकास और खर्च के लंबे चौड़े आंकडे विपक्ष करप्ट है कांग्रेस महाभ्रष्ट है उनके जुमले, चुनावों का पुराना ढर्रा है। यह हमेशा होता आया है कि चुनाव निकट आते ही वे बड़ी जनसभाएं करेंगे उनमें हजारों करोड रू के खर्च की बाते होगी विपक्ष को महाभ्रष्ट बतलाया जाएगा और कार्यकर्ताओ को अपने आपको प्रचार में झौकने का आव्हान होगा बस फर्क सिर्फ यह है कि चेहरा नहीं कमल

इसमें जोखिम भी है जरा सोचिए यदि 4 राज्यों मे या दो राज्यों में भी भाजपा पंचर हुई तब वह हार, क्या खुद नरेंद्र मोदी की नहीं मानी जाएगी? जो भी हो 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत बहुत बदलेगा आपकी इस चुनावी रणनीति को लेकर क्या राई है। हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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