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Arvind Kejriwal: क्या है CM Kejriwal के इस्तीफा न देने का रहस्य?

Arvind Kejriwal: दोस्तों राजनीति में एक कहावत खूब कही जाती है- जेल जाकर ही असली नेता तैयार होता है. यह एक तरह के संघर्ष को दिखाता है. हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने देश में नई परिपाटी की शुरूआत की है. वो ये कि भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार सीएम (CM Kejriwal) भी सरकार चला सकता है. केजरीवाल ने जैसा कहा, वैसा करके दिखा भी दिया है. अभी तक ईडी की न्यायिक हिरासत से उन्होंने कथित रूप से दो आदेश पारित किए हैं उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी नहीं दिया है और ईडी की हिरासत में ही सरकार चला रहे हैं. फैसले भी ले रहे हैं.

दरअसल, आम आदमी पार्टी का पूरा चुनावी कैंपेन केजरीवाल के ही इर्द-गिर्द है इसलिए सीएम खुद नहीं चाहते कि वह सीन से अलग हों. क्या सलाखों के पीछे से केजरीवाल बीजेपी को टक्कर दे पाएंगे? फिलहाल अरविंद केजरीवाल कब तक जेल के अंदर से दिल्ली की सरकार चला पाते हैं ये तो समय बताएगा पर दोस्तों जब केजरीवाल सीएम बने रह सकते हैं तो मनीष सिसौदिया और सत्‍येंद्र जैन से इस्‍तीफा क्‍यों लिया? जब लालू, हेमंत सोरेन अपनी कुर्सी ट्रांसफर कर सकते हैं तो केजरीवाल को किस बात का डर है ?? पत्‍नी सुनीता को सीएम बनाने से क्‍या डर रहे हैं केजरीवाल? क्या आप के बाकी नेता भरोसे के काबिल नहीं हैं? इन तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए article के अंत तक बने रहिएगा

केजरीवाल सीएम रह सकते हैं, तो मनीष , सत्‍येंद्र से इस्‍तीफा क्‍यों ?

दोस्तों सबसे बड़ा सवाल तो ये है जब अरविंद केजरीवाल को ऐसा लगता है कि वो जेल के अंदर से ही सरकार चला सकते हैं तो फिर ये योजना उन्होंने अपनी टीम के अन्य मंत्रिमंडलीय साथियों के जेल जाने पर क्यों नहीं शुरू की. इससे बेहतर क्या हो सकता है कि जेल के अंदर से उन्हें अपने साथियों के साथ मीटिंग वगैरह की सुविधा भी मिल जाती. अरविंद केजरीवाल को जेल में पहुंचे साथियों की फिर से मंत्रीमंडल में एंट्री करानी चाहिए. अगर शपथ ग्रहण में दिक्कत हो तो कोर्ट का सहारा लेना चाहिए. कोर्ट जमानत भले ही न दे इतनी रिक्वेस्ट तो स्वीकार कर ही सकता है कि उनके शपथ ग्रहण की व्यवस्था करवा दे.

लालू, हेमंत कुर्सी ट्रांसफर कर सकते हैं, तो केजरीवाल को क्या डर?

दोस्तों जब लालू , हेमंत सोरेन अप कुर्सी transfer कर सकते है तो केजरीवाल क्यों नहीं करते केजरीवाल लालू यादव का राबड़ी मॉडल या हेमंत सोरेन का मांझी मॉडल अपना सकते थे. पर शायद ,,अभी भी वो गुणा-गणित लगा रहे हैं कि दोनों में से कौन सा मॉडल उनके लिए मुफीद होगा. क्योंकि अभी तक ऐसा नहीं लग रहा है कि वो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से रिजाइन देने वाले हैं. इसके साथ ही यह भी तय है कि जेल के अंदर से दिल्ली सरकार को चलाना ज्यादा दिन संभव भी नहीं है. मंगलवार को जिस तरह से बीआरएस नेता के कविता को इसी शराब घोटाले में कोर्ट ने 14 दिन की न्यायायिक हिरासत में भेजा है आज नहीं तो कल लालू और हेमंत सोरेन की तरह केजरीवाल को फैसला लेना ही होगा.

पत्‍नी सुनीता को सीएम बनाने से क्‍या डर रहे हैं केजरीवाल?

दोस्तों पत्नी सुनीता केजरीवाल को सीएम बनाने से डरने के पीछे क्या कारण हो सकता है? क्या महारानी सीरीज के हुमा कुरैशी के किरदार से डर रहे हैं? या उत्तर प्रदेश मे मंत्री दया शंकर की पत्नी स्वाति सिंह की कहानी से. दरअसल ओटीटी पर मौजूद महारानी की कहानी बिहार की राजनीति में एक महिला मुख्यमंत्री की कहानी है. भीमा भारती बिहार के मुख्यमंत्री होते हैं . किसी कारणवश उनको रिजाइन करना पड़ता है और वो अपनी पत्नी रानी भारती को मुख्यमंत्री बना देते हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद वह गूंगी गुड़िया बिहार के शुद्धीकरण में लग जाती है और अपने पति के आदेश मानने से इनकार कर देती है. बाद में भीमा भारती बहुत कोशिश करके भी अपनी पत्नी को कुर्सी से उतार नहीं पाते हैं.

उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह की भी यही कहानी है. बीजेपी नेता दयाशंकर ने मायावती के लिए कभी अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. मामला बढ़ने के बाद अपने पति के बचाव में उतरी स्वाती सिंह इस तरह हाईलाइट होती हैं कि पति की जगह पर पार्टी उन्हें विधायक का टिकट देती है और फिर जीतने पर मंत्री भी बनती हैं. उसके बाद स्वाति भी अपने पति के आदेशों को मानने से इनकार कर देती है और अपनी स्वतंत्र इमेज बनाती हैं.

क्या केजरीवाल को ये दोनों कहांनियां परेशान कर रही हैं. क्योंकि सुनीता केजरीवाल भी आईआरएस रही हैं. प्रशानिक सेवा के दौरान उनकी योग्यता पर कभी उंगली नहीं उठी है. इसलिए उनकी काबिलियत पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता. हो सकता है कि जब उन्हें सीएम का पद मिल जाए तो वो केजरीवाल से बेहतर काम करें. क्योंकि केजरीवाल अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कभी एक्टिविस्ट से ऊपर नहीं उठ पाए. हो सकता है पुरुष का इगो केजरीवाल के आड़े आ रहा हो जिसके चलते वो सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने से डर रहे हों.

क्या आप के बाकी नेता भरोसे के काबिल नहीं ?

अरविंद केजरीवाल के रिजाइन न करने के पीछे एक कारण ये भी हो सकता है की उन्हे अपने सहोगियों के प्रति भरोसा ना हो …कहीं न कहीं भरोसे का ही कारण था कि पार्टी से प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव जैसे कद्दावर नेता धीरे-धीरे पार्टी छोड़कर जाते रहे. तो क्या अरविंद केजरीवाल को अब भी यही चिंता खाए जा रहा है कि अगर वो आतिशी, सौरभ भारद्वाज या गोपाल राय आदि में से किसी को मुख्यमंत्री बना देते हैं तो ये लोग भविष्य में उन्हें किनारे लगा देंगे. केजरीवाल अगर ऐसा सोचते हैं तो यह सही भी है. राजनीति में कोई सगा नहीं होता है.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी यहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ही सीएम बने पर परिवार में कई दावेदार होने के चलते उन्होने चंपई सोरेन का नाम चुना. दरअसल भारतीय राजनीति में एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ है जब भरोसे का लोगों ने कत्ल किया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उदाहरण सामने है. जब उन्होंने जीतन राम मांझी को सबसे कमजोर समझकर सीएम बनाया था. उनकी सोच यही थी कम से कम ये तो उनकी हर बातों को मानेंगे ही और जब कहूंगा सीएम पद छोड़ भी देंगे. पर हुआ बिल्कुल उल्टा. सीएम पद संभालते ही मांझी पलट गए. यहां तक की उन्हें कुर्सी से हटाने में नीतीश कुमार की काफी मशक्कत करनी पड़ी.

दोस्तों देश का इतिहास रहा है कि मुख्यमंत्री कई खास विभाग अपने से ही अटैच रखते हैं. इसके पीछे यही कारण रहा है कि सरकार में उनका महत्व बना रहे. पर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने सभी महत्वपूर्ण विभाग अपने खास सहयोगियों को देते रहे हैं. जेल जाने के पहले तक सभी खास विभाग मनीष सिसौदिया के पास होते थे. बाद मे , आतिशी के पास चले गए. राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है ,,कि ऐसा कानूनी विवादों में फंसने से बचने के लिए अरविंद केजरीवाल ने किया था. पर जैसा सोचा वैसा हुआ नहीं. शराब घोटाले में खुद को कानून की जाल से वो बचा नहीं सके

इस्तीफा ना देने के पीछे केजरीवाल की क्या है रणनीति ?

दोस्तों इतिहास में कुछ नेता ऐसे हुए हैं जो जेल जाकर और मजबूत हुए. जॉर्ज फर्नांडिस की हथकड़ी वाली तस्वीर तो आपको याद ही होगी. शायद आम आदमी पार्टी कुछ वैसे ही करिश्मे की उम्मीद कर रही होगी. इमर्जेंसी के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस को भी जेल में डाल दिया गया था. 1977 का लोकसभा चुनाव उन्होंने जेल से ही लड़ा था. उस समय उनके हाथ में लगी हथकड़ी वाली तस्वीर खूब चर्चा में रही थी. इसे चुनावी पोस्टर बनाया गया. यह तस्वीर आपातकाल के विरोध का प्रतीक बनी थी. मुजफ्फरपुर सीट से वह तीन लाख से अधिक वोटों से जीते थे.

उस दौर में सुषमा स्वराज ने नारा दिया था- जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा. जॉर्ज के समर्थन में तब सुषमा स्वराज खुद मुजफ्फरपुर गई थीं. उन्होंने पूरे इलाके में हथकड़ियों में जकड़ी जॉर्ज की तस्वीर लेकर चुनाव प्रचार किया था. वह 10 दिन तक मुजफ्फरपुर में डटी रहीं. बाद में जॉर्ज फर्नांडिस ने रक्षा समेत भारत के कई अहम मंत्रालय संभाले.

इसी तरह दूसरा बड़ा उदाहरण आडवाणी का है. सोमनाथ से रथ लेकर निकले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को अक्टूबर 1990 में एक दिन समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया. लालू यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार करवाया था. हालांकि उन्हें दुमका के गेस्ट हाउस में रखा गया. इसके बाद आडवाणी का सियासी कद और राम मंदिर आंदोलन दोनों ने जोर पकड़ लिया., आगे जो हुआ इतिहास में दर्ज है. राम मंदिर की लहर में भाजपा को जबर्दस्त सियासी फायदा हुआ. आगे चलकर आडवाणी गृह मंत्री और डिप्टी पीएम बने.

और ऐसे ही दक्षिण भारत में कई उदाहरण मौजूद हैं. हाल के वर्षों में जगन का केस प्रासंगिक है. आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी कुछ साल पहले जेल गए थे. 16 महीने जेल में रहने के बाद बाहर आए तो उनकी राजनीति चल पड़ी.

दरअसल, केजरीवाल के इस्तीफा न देने के पीछे आम आदमी पार्टी की सोची समझी रणनीति है. इसकी तैयारी पार्टी ने काफी पहले कर ली थी. भाजपा के नेता प्रोटेस्ट कर रहे हैं लेकिन AAP कॉन्फिडेंट है. आम आदमी पार्टी ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 का हवाला देते हुए कहा है कि दो साल या उससे ज्यादा समय के लिए जेल की सजा पाए नेता को 6 साल के लिए अयोग्य माना जाता है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि चूंकि केजरीवाल को दोषी नहीं ठहराया गया है न ही वह तकनीकी रूप से अभी तक मुकदमे में हैं. ऐसे में पार्टी प्लान-बी के बारे में सोच ही नहीं रही है. फिलहाल पूरा जोर इस मामले को अपने फेवर में करते हुए ज्यादा से ज्यादा जनता की सहानुभूति हासिल करने पर है. आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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