Mahua Moitra: सांसद महुआ मोइत्रा की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। उनकी पार्टी के कोई भी दिग्गज नेता और सीएम ममता बनर्जी ने अब तक इस पूरे विवाद से दूरी बना रखी है। सियासी उठापटक का दौर जारी है। रिश्वत लेकर पीएम मोदी और अडानी समूह के खिलाफ सवाल पूछने के कथित मामले में फंसी तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा पर सख्त एक्शन हो सकता है। जी हाँ, महुआ मोइत्रा की सांसदी खतरे में है! क्या कल अयोग्य घोषित हो सकती है महुआ मोइत्रा ?
महुआ मोइत्रा वाले मामले में लोकसभा की एथिक्स कमेटी 7 नवंबर को यानि कल बैठक करने वाली है.लोकसभा की एथिक्स कमेटी सांसद के खिलाफ मसौदा रिपोर्ट पर विचार करने और उसे स्वीकार करने को तैयार है। पदाधिकारियों ने बताया किइस बैठक में TMC सांसद के खिलाफ आरोपों को लेकर ड्राफ्ट की गई रिपोर्ट पर विचार कर अडॉप्ट किया जाएगा
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक एथिक्स कमेटी महुआ मोइत्रा के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है. हो सकता है कि उन्हें मौजूदा लोकसभा की शेष सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए. मामले से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि बैठक में पैनल 2005 में सामने आए इसी तरह के मामले के सीख ले सकता है. 2005 में सवाल पूछने के लिए कथित तौर पर पैसे लेने वाले 11 सांसदों को संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. फिर जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी अयोग्यता को बरकरार रखा था
महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) ने लगाए थे आरोप
इससे पहले 2 नवंबर को महुआ मोइत्रा पैनल के सामने पेश हुई थीं. लेकिन पूछताछ पूरी होने से पहले ही महुआ मोइत्रा और दानिश अली समेत पैनल के पांच विपक्षी सदस्यों के साथ बाहर आ गए, उन्होंने कमेटी के अध्यक्ष विनोद कुमार सोनकर पर अनैतिक और पक्षपाती होने का आरोप लगाया. दावा किया कि उनसे गंदे और पर्सनल सवाल पूछे गए. इसके बाद महुआ मोइत्रा ने लोकसभा अध्यक्षओम बिरला को चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया कि समिति के सभी सदस्यों की मौजूदगी में सोनकर ने उनका ‘चीरहरण’ किया.
इसके जवाब में सोनकर ने कहा कि पैनल मोइत्रा की बात सुनना चाहता था लेकिन उन्होंने वैध सवालों से ध्यान हटाने के लिए गुस्से का इस्तेमाल किया और पैनल और अध्यक्ष के खिलाफ असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया. सोनकर ने जोर देकर कहा कि मोइत्रा से बिजनेस टाइकून दर्शन हीरानंदानी के हलफनामे से जुड़े हुए सवाल ही पूछे गए थे. बोले- जांच का उद्देश्य महुआ मोइत्रा के अनैतिक आचरण के आरोपों से संबंधित तथ्यों का पता लगाना था.
मोइत्रा ने रविवार को लोकसभा आचार समिति के प्रमुखविनोद कुमार सोनकर पर निशाना साधा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में तृणमूल सांसद ने भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा कि उनके पास आचार समिति में रिकॉर्ड तथ्यों की हूबहू कॉपी मौजूद है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा मेरे खिलाफ आपराधिक मामलों की योजना बना रही है यह जानकर मैं कांप रही हूं।
पोस्ट में महुआ ने कहा कि उनका स्वागत है। मैं सिर्फ यह जानती हूं कि मेरे पास मौजूद जूतों की संख्या पर सवाल करने से पहले एक लाख 30 हजार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले में सीबीआई और ईडी को अडानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की जरूरत है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर रिश्वत के बदले व्यापारी दर्शन हीरानंदानी के कहने पर अडानी समूह को निशाना बनाने वाले प्रश्न लोकसभा में पूछने का आरोप लगाया है। आरोप लगाया कि महुआ ने लोकसभा के मेल आईडी का अपना लॉगइन हीरानंदानी को दे दिया था और वो इससे विभिन्न जगहों से प्रश्न डालता था। दूसरी ओर महुआ ने भी माना है कि हीरानंदानी ने उनके लॉगिन का उपयोग किया है लेकिन टीएमसी सांसद का कहना है कि उसने रिश्वत पाने के लिए नहीं किया है।
15 सदस्यीय समिति में भाजपा के सदस्यों का बहुमत है जो मोइत्रा के खिलाफ लगे आरोपों पर गंभीर कार्रवाई भी कर सकते हैं। जाहिर है कि यह मामला पूरी तरहउन्हें परेशान करने का है और मीडिया में लीक करके तथा महुआ के आरोपों को जगह नहीं मिलने से यह बाकायदा साबित हो चला है।
संसद में सवाल का विवाद नया नहीं
ये तो समझ की बात है कि पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप तब तक साबित नहीं होगा जब तक इस बात के लिखित सबूत नहीं होंगे कि पैसे सवाल पूछने के लिए दिये लिये जा रहे हैं। जाहिर है ऐसा होना नहीं है। आम तौर पर अगर ऐसा कोई दस्तावेज हो भी तो रिश्वत लेने वाले के साथ देने वाला भी फंसेगा और वायदा माफ गवाह बनाये जाने की गारंटी सवाल पूछने के लिए पैसे देते समय तो नहीं ही होगी। इसलिए ना लेने वाला और ना देने वाला ऐसा दस्तावेज बनाएगा। यही नहीं सहेली को उपहार देना भी रिश्वत नहीं हो सकता है और उपहार को भी कोई रिश्वत के रूप में दर्ज नहीं करेगा।
वैसे महुआ का कहना है कैश यानी नकद कहां है? कब, कहां, किसने, किसे दिया और क्या सबूत है। यही नहीं स्वेच्छा से आरोपों के समर्थन में जारी किये गये शपथ पत्र में नकद देने का जिक्र ही नहीं है। इसके अलावा नकद दिया-लिया गया इसे साबित करने का काम देने वाले को करना है पैसे नहीं मिले हैं यह साबित करने की जरूरत नहीं है। यह इसलिए भी जरूरी है कि किसी को पैसे देने का आरोप तो कोई भी लगा सकता है कि दिये हैं। पी चिदंबरम के मामले में भी यही हुआ था और तब भी आरोप लगाने वाले को वायदा माफ गवाह बनाया गया था।
संजय सिंह के मामले में भी ऐसा ही हुया है। दस साल में एक ही तरीके से तीन दलों के तीन मुखर विरोधियों को निपटाने का यह तरीका भी विचारणीय है। फिर भी मामला चल रहा है और अखबारों तथा मीडिया में इतनी जगह पा रहा है तो इसीलिए, कि महुआ सरकार के निशाने पर हैं।