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Cases Pending in Court: देश की अदालतों में हैं 5 करोड़ मामले पेंडिंग

Cases Pending in Court

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Cases Pending in Court:  उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा का ट्रायल पूरा होने में कम से कम पांच साल का वक्त लग सकता है. वो भी सेशन कोर्ट में. उसके बाद मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी जा सकता है. सेशन कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस मामले में 200 गवाह, 171 दस्तावेज और 27 फोरेंसिक रिपोर्ट्स हैं. इसलिए मामले की सुनवाई पूरी करने में पांच साल का वक्त लग सकता है. लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में आशीष मिश्रा मुख्य आरोपी हैं. आशीष मिश्रा केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे हैं. यूपी पुलिस की एफआईआर के मुताबिक, एक एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था, जिसमें आशीष मिश्रा बैठे थे. तिकुनिया गांव में हुई इस हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें चार किसान थे. मामले में आशीष मिश्रा के अलावा 12 और लोगों को भी आरोपी बनाया गया है. 

सुप्रीम कोर्ट में लगभग 70 हजार केसे पेंडिंग हैं

कुल मिलाकर इस मामले का निपटारा होने में सालों लग सकते हैं. क्योंकि सेशन कोर्ट ही पांच साल का वक्त लगने की बात कह रही है. इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खुला है. इसी से समझा जा सकता है कि ये मामला सुलझने में पांच साल नहीं, बल्कि इससे भी ज्यादा वक्त लग सकता है. आंकड़े बताते हैं भारत में अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है. नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (NJAD) के मुताबिक, देशभर की अदालतों में पांच करोड़ से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. इनमें से लगभग साढ़े चार करोड़ से ज्यादा मामले तो जिला और तालुका अदालतों में ही हैं. वहीं, 25 हाई कोर्ट में 59 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. जबकि, सुप्रीम कोर्ट में लगभग 70 हजार केसे पेंडिंग हैं.  Cases Pending in Court

Cases Pending in Court कब से पेंडिंग हैं मामले?

नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के मुताबिक, कलकत्ता हाईकोर्ट में एक मामला 1951 से पेंडिंग है. यानी, कि 72 साल बाद भी उस मामले का निपटारा नहीं हो सका है. 13 जनवरी तक देशभर की 25 हाई कोर्ट में कुल 59.78 लाख से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं. इनमें से 42.92 लाख सिविल मामले हैं, जबकि 16.86 लाख क्रिमिनल मामले हैं. Cases Pending in Court  आंकड़ों के मुताबिक, 10 लाख से ज्यादा मामले ऐसे हैं जो एक साल में आए हैं. करीब साढ़े 9 लाख मामले एक से तीन साल पुराने हैं. जबकि, Cases Pending in Court 11.24 लाख मामले तीन से पांच साल से अदालतों में पेंडिंग हैं. 73 हजार से ज्यादा मामले तो ऐसे हैं जो 30 साल से भी लंबे समय से हाई कोर्ट में अटके पड़े हैं.

मामलों के लंबा खिंचने की वजह?

2016 में अदालतों में पेंडिंग मामलों में लगने वाले समय को लेकर एक स्टडी हुई थी. Cases Pending in Court ये स्टडी कानून पर काम करने वाली संस्था दक्ष ने की थी. इस संस्था ने अलग-अलग अदालतों में लंबित 40 लाख से ज्यादा मामलों के आधार पर रिपोर्ट जारी की थी.इस आधार पर संस्था ने अनुमान लगाया था कि अगर आपका कोई केस किसी हाई कोर्ट में जाता है तो उसका निपटारा होने में करीब 3 साल और 1 महीने का वक्त लगता है. Cases Pending in Court वहीं, अगर मामला जिला या तालुका अदालत में जाता है तो उसे निपटने में 6 साल लग सकते हैं. और अगर मामला सुप्रीम कोर्ट में जाता है तो 13 साल का समय लग सकता है.पेंडिंग मामलों पर स्टडी करने वाली संस्था दक्ष का आकलन था कि हाई कोर्ट के जज हर दिन 20 से 150 मामलों की सुनवाई करते हैं. Cases Pending in Court अगर इसका औसत निकाला जाए तो हर दिन 70 मामले. यानी, एक जज हर दिन औसतन साढ़े पांच घंटे का समय सुनवाई को देते हैं. वहीं, दक्ष के अनुसार हाई कोर्ट के जज हर दिन Cases Pending in Court एक मामले की सुनवाई पर 15 से 16 मिनट देते हैं. हालांकि, इसमें जजों के काम पर सवाल नहीं उठाया जा रहा है. अदालतों में हर दिन मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है. देश में अभी अदालतों में जितने जजों की जरूरत है, उतने ही नहीं.

जजों की संख्या पर क्या कहते हैं आंकड़े?

लॉ कमीशन ने 120वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि हर 10 लाख लोगों पर 50 जज होने चाहिए. लॉ कमीशन की ये रिपोर्ट जुलाई 1987 में आई थी. उस समय हर 10 लाख आबादी 11 से भी कम जज थे. Cases Pending in Court  पिछले साल फरवरी में केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने राज्यसभा में बताया था कि भारत में हर 10 लाख लोगों पर 21 जज हैं. इसका मतलब हुआ कि लॉ कमिशन की रिपोर्ट के 35 साल बाद भी हर 10 लाख लोगों पर सिर्फ 11 जज ही बढ़े. हालांकि, इस दौरान आबादी कई गुना बढ़ी.पिछले साल जुलाई में किरन रिजिजू ने कहा था कि जब वो कानून मंत्री बने थे तब अदालतों में चार करोड़ से भी कम मामले पेंडिंग थे, लेकिन अब उनकी संथ्या पांच करोड़ तक पहुंच गई है. 

जज हर दिन औसतन 40 से 50 मामलों की सुनवाई करते हैं

रिजिजू ने कहा था, Cases Pending in Court ब्रिटेन में हर जज हर दिन चार से पांच मामलों में फैसला सुनाते हैं, लेकिन भारतीय अदालतों में हर जज हर दिन औसतन 40 से 50 मामलों की सुनवाई करते हैं. उन्होंने कहा था कि जो लोग न्याय में देरी के लिए जजों पर टिप्पणी करते हैं, वो सोच भी नहीं सकते कि एक जज को कितना काम करना पड़ता है.सरकार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जजों के 34, हाई कोर्ट्स में 1,104 और जिला-तालुका अदालतों में 24,521 पद हैं. लेकिन इनमें से कई सारे पद खाली पड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट में जजों के दो पद खाली हैं. वहीं, हाई कोर्ट्स में 387 और जिला-तालुका अदालतों में पांच हजार से ज्यादा पद खाली हैं.

इंसाफ की कितनी कीमत?

दक्ष सर्वे में सामने आया था कि भारत में मुकदमा लड़ने वाला हर व्यक्ति हर दिन अदालत में पेश होने के लिए औसतन 519 रुपये खर्च करता है. Cases Pending in Court कुल मिलाकर अदालतों में पेश होने के लिए मुकदमा लड़ने वाले लोग सालाना औसतन 30 हजार करोड़ रुपये खर्च करते हैं.इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि सालाना एक लाख रुपये से भी कम कमाने वाले परिवार का एक वादी व्यक्ति अपनी कमाई का 10 फीसदी तक अदालत में पेश होने पर खर्च कर देता है. 

हर साल 50,387 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है

इतना ही नहीं, इस सर्वे में ये भी अनुमान लगाया गया था कि अदालतों में पेश होने की वजह से प्रोडक्टिविटी लॉस भी हो रहा है. Cases Pending in Court एक व्यक्ति के भी अदालत में पेश होने के कारण सालाना 873 रुपये का नुकसान हो जाता है. कुल मिलाकर इससे देश को हर साल 50,387 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, Cases Pending in Court जो भारत की जीडीपी का 0.48 फीसदी है.इस सर्वे में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को लेकर भी आंकड़े जुटाए गए थे. इसमें सामने आया था कि लंबी कानूनी लड़ाई की वजह से 28 फीसदी आरोपियों ने तय सजा से ज्यादा वक्त जेल में काटा था. 34 फीसदी आरोपियों ने कहा था कि उन्हें जमानती अपराध में जेल में रखा गया है, लेकिन उनके पास जमानत के लिए पैसे नहीं है. 

दो मामले, जो बताते हैं इंसाफ मिलना कितना मुश्किल!

केस-1: अप्रैल 1993 में दिल्ली पुलिस के पास एक केस आता है. मामला ये था कि एक महिला आग में बुरी तरह झुलस गई थी. महिला के पति ने आरोप लगाया था कि उसके ही एक रिश्तेदार ने पहले रेप किया और फिर उसे जला दिया. मार्च 2002 में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी पाया और उम्रकैद की सजा सुना दी. मामला हाईकोर्ट पहुंचा. सुनवाई चल ही रही थी कि अप्रैल 2016 में आरोपी की मौत हो गई. मौत के दो साल बाद हाईकोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में मर चुके आरोपी को निर्दोष करार दिया. 

केस-2: सितंबर 2000 में यूपी के ललितपुर जिले के सिलवान गांव में पुलिस ने एक व्यक्ति के खिलाफ रेप और एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया. व्यक्ति पर महिला के साथ रेप करने का आरोप था. फरवरी 2003 में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. मामला हाईकोर्ट पहुंचा. मार्च 2021 में अदालत ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने पाया कि महिला के साथ रेप नहीं हुआ था. इस तरह से वो आरोपी बिना जुर्म के 21 साल तक जेल में रहा.

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