Loksabha Election 2024: दोस्तों भारतीय जनता पार्टी ने आगामी आम चुनाव की तैयारियों को जमीन पर उतारना शुरू कर दिया है. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2024 में ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके साथ ही आचार संहिता लगने से पहले बीजेपी अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान करेगी. संभव है कि जनवरी के अंतिम सप्ताह या फरवरी के पहले हफ्ते में उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए जाएंगे. यानि की BJP ने लोकसभा चुनाव का प्लान फाइनल कर लिया है जिसके तहत 2019 से ज्यादा सीटों पर उतारेगी उम्मीदवार अब सवाल उठता है क्या ज्यादा उमीदवार उतारने से इंडिया गठबंधन पर क्या फर्क पड़ेगा क्या इंडिया गठबंधन टूट जाएगा
भाजपा और जनता दल यू की ओर से शह मात का खेल चल रहा है। दोनों पार्टियों के बीच तालमेल की बात चल रही है। नीतीश कुमार भले विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन उनकी पार्टी भाजपा के भी संपर्क में है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 13 जनवरी को बिहार जाने का कार्यक्रम बना तो नीतीश कुमार का कार्यक्रम 21 जनवरी को झारखंड के रामगढ़ जाने का था। प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम अचानक रद्द हुआ तो नीतीश कुमार का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया। अब प्रधानमंत्री मोदी के 27 जनवरी को बिहार जाने की चर्चा है तो जदयू ने ऐलान किया है कि नीतीश तीन फरवरी को झारखंड जाएंगे।
BJP की लोकसभा चुनाव की क्या है रणनीति?
दोस्तों पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा 437 सीटों पर लड़ी थी, जिनमें से 303 सीटें जीती थी। अभी तक भाजपा ने औपचारिक रूप से लोकसभा में सीटों के लक्ष्य का नारा नहीं दिया है। पार्टी के कुछ मुख्यमंत्री 350 से लेकर 450 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता पिछली बार से ज्यादा सीटें लाने का दावा जरूर कर रहे हैं। जनकल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विभिन्न वर्गों के बीच देशव्यापी लोकप्रियता को देखते हुए यह असंभव भी नहीं लग रहा है लेकिन ज्यादा सीटें जीतने के लिए पार्टी पिछली बार की तुलना में ज्यादा सीटों पर लड़ना भी जरूरी मान रही है। जाहिर है भाजपा की सीटें सहयोगी दलों की कीमत पर ही बढ़ेगी।
आंकड़ों के हिसाब से राजग में 39 दल शामिल हैं लेकिन उनमें से बहुत कम को ही लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। वैसे अभी तक राजग में सीटों के बंटवारे के लिए औपचारिक बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार सहयोगी दलों की ओर से सीटों की सबसे ज्यादा मांग महाराष्ट्र और बिहार में होने की संभावना है।
महाराष्ट्र में शिवसेना का शिंदे गुट और राकांपा का अजित पवार गुट मजबूत क्षेत्रीय दल हैं, लेकिन भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह अकेले 30 से 35 सीटों पर लड़ेगी और दोनों सहयोगी दलों को शेष सीटों पर संतोष करना पड़ेगा। 2019 में भाजपा महाराष्ट्र में 25 सीटों पर लड़ी थी और 23 सीटें जीतने में सफल रही थी।
वहीं, एनडीए में शामिल शिवसेना 23 सीटों पर लड़कर 18 सीटें जीती थी। शिवसेना और राकांपा में विभाजन के बाद महाराष्ट्र में भाजपा अग्रणी भूमिका है। इसी तरह से बिहार में जदयू के बाहर जाने के बाद भाजपा नए सिरे से 30 से अधिक सीटों पर लड़ने की तैयारी में है। 2014 में भाजपा 30 सीटों पर लड़ी थी और 22 सीटों पर जीती थी। वहीं, लोजपा सात में से छह सीटें जीती थी।
2019 से ज्यादा सीटों पर उतारेगी उम्मीदवार
2019 में जदयू के साथ समझौते के कारण भाजपा ने अपनी पांच जीती हुई सीटें छोड़ दी थी और 17 सीटों पर लड़कर सभी सीटें जीतने में सफल रही थी। वहीं, जदयू 17 में 16 सीटें जीती थी। एक सीट कम पर लड़ने के बावजूद लोजपा सभी छह सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार भाजपा लोजपा को चार सीटों पर मनाने की कोशिश कर रही है। ज्यादा दबाव की स्थिति में लोजपा को पांच सीट तक देने पर विचार कर सकती है।
वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल को एक या दो सीटें और जीतन राम मांझी की पार्टी हम को एक सीट दी जा सकती है। भाजपा की कोशिश बिहार में खुद 33 सीटों पर लड़ने की है। कर्नाटक में तीन सीटों की मांग कर रही जेडीएस को भाजपा ने लोकसभा की दो सीटें देने के साथ ही एक राज्यसभा सीट देने का आफर किया है। भाजपा पिछली बार 27 सीटों पर लड़ी थी जिनमें 25 सीटें जीती थी और उसका समर्थित एक निर्दलीय उम्मीदवार भी जीतने में सफल रहा था। भाजपा इस बार 26 सीटों पर लड़ने का मन बना चुकी है।
उत्तर प्रदेश में अपना दल और निषाद पार्टी को दो-तीन सीटें देने के अलावा भाजपा बाकी सभी सीटों पर खुद ही लड़ेंगी। झारखंड में आजसू को एक सीट मिलना तय है।, दक्षिण भारत में भाजपा कर्नाटक के बाद तमिलनाडु पर सबसे अधिक जोर दे रही है लेकिन AIADMK के साथ अभी तक सीटों के बंटवारे और साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर बातचीत शुरू नहीं हुई है। यदि बातचीत हुई भी भाजपा तमिलनाडु में अपने लिए 15 से अधिक सीटें मांग सकती है।
आंध्रप्रदेश में भी टीडीपी के साथ ऐसी ही शर्त रहेगी लेकिन वाईआरएस रेड्डी के सहयोगी रवैये को देखते हुए वहां भाजपा टीडीपी के साथ गठबंधन करने से बच भी सकती है। सहयोगी दलों को भाजपा का संदेश स्पष्ट है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता सहयोगी दलों के उम्मीदवारों के लिए भी जीत की गारंटी रहेगी और कम सीट पर लड़कर भी वे फायदे में रहेंगे। इसी तरह से भाजपा इस बार सहयोगी दलों को दी गई सीटों पर संगठन की पूरी ताकत झोंकने और समान रूप से चुनाव प्रचार करने का फैसला किया है।
इंडिया गठबंधन टूटने के आसार !
दोस्तों बताया जा रहा है कि नीतीश मकर संक्रांति से पहले कोई फैसला नहीं करना चाह रहे थे तो भाजपा 22 जनवरी को राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम से पहले कोई राजनीतिक फैसला नहीं चाहती थी। इसलिए 27 जनवरी की प्रस्तावित यात्रा बेहद अहम है। उस दिन तक भाजपा और जदयू में सब कुछ तय हो जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार गठबंधन में 17 सीटों पर लड़ना चाहते हैं जितनी सीटों पर वे पिछली बार भाजपा के साथ लड़े थे। लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि पांच सीटें बिहार से बाहर हो सकती हैं। इसमें झारखंड, उत्तर प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश का नाम लिया जा रहा है। हालांकि सीट संख्या से ज्यादा मुख्यमंत्री पद की मांग पर बात ज्यादा अटक रही है। वह पेंच अगले 10 दिन में सुलझ गया तो बिहार में एक बार फिर गठबंधन बदल हो जाएगा और अगर भाजपा नीतीश को सीएम बनाने को राजी नहीं होती है तो मौजूदा गठबंधन चलता रहेगा। अब इंडिया गठबंधन की डोर नीतीश ओर भाजपा की हाथ में है आपको बीजेपी की ये रणनीति कैसी लगी हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ