Bihar Politics: दोस्तों बिहार की राजनीति में उठापटक का दौर चलता ही रहता है क्या अब बिहार में मोदी जी को हार का सामना करना पड़ेगा? क्या नीतीश कुमार के साथ गठबंधन मोदी (BJP) जी को भारी पड़ने वाला है ? क्या पशुपति पारस की झोली मे एक भी टिकट नहीं दिया तो मोदी जी को ये भारी पड़ेगा । आखिर चिराग पासवान पर भाजपा ने क्यों भरोसा दिखाया? जब चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पार्टी का विभाजन हुआ तब भाजपा ने पशुपति पारस (Pashupati Paras) को मंत्री क्यों बनाया? अब भाजपा पशुपति पारस को किनारे क्यों कर रही है?
दोस्तों जैसे ही पशुपति पारस ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिया बीजेपी के दिल की धड़कने तेज हो गई अब पार्टी समझ नहीं पा रही है करे तो क्या करे क्योंकि इस इस्तीफे के बाद बीजेपी की हालत ऐसी है एक को मनाओ तो दूसरा रूठ जाए पहले चिराग पासवान आखे दिखा रहे थे तो बीजेपी ने उन्हे तवज्जो देकर उन्हे शांत कर लिया लेकिन उनपर फोकस करने में लगी बीजेपी चिराग के चाचा ओर मोदी कैबिनेट में मंत्री पशुपति पारस पर ध्यान नहीं दे पाई ओर ये ही भूल उन्हे भारी पड़ गई अपनी नजरन्दाजगी से पशुपति पारस ने ,,एनडीए से अपनी राहे अलग कर ली दोस्तों वैसे तो गोदी मीडिया में खूब खबरे चली की चाणक्य जी ने मोदी शाह की जोड़ी ने बिहार में सब संभाल लिया है तो क्या इन सबके पीछे चाणक्य जी की चाणक्यगिरी है
Pashupati को किनारे कर Chirag पर भरोसा क्यों ?
दोस्तों पशुपति पारस ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. पशुपति पारस ने बीजेपी पर ख़ुद के साथ अन्याय करने का आरोप भी लगाया है. पारस का इस्तीफ़ा बिहार में एनडीए में सीटों के बँटवारे के ठीक एक दिन बाद आया है. सोमवार को बिहार में एनडीए में सीटों की साझेदारी में पशुपति कुमार पारस के दल को कोई भी सीट नहीं दी गई थी. पारस ख़ुद हाजीपुर से लोकसभा सांसद हैं और एलजेपी में टूट होने के बाद ,,पार्टी के अन्य चार सांसद भी उनके साथ ही थे. पशुपति कुमार पारस अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ख़ुद को ‘मोदी का परिवार’ बता रहे थे. लेकिन हिस्सेदारी में परिवार से कुछ नहीं मिलने पर पारस की पार्टी के समर्थक और कार्यकर्ता नाराज़ गो गए
बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद राजनीतिक उठापटक के बीच चिराग पासवान का कद बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। बिहार में भाजपा 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि जदयू को 16 सीटें दी गई हैं। वहीं चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) के खाते में 5 सीटें गई है। यह कहीं ना कहीं चिराग पासवान के लिए बड़ी जीत मानी जा सकती हैं। चिराग के चाचा पशुपति पारस को गठबंधन में खाली हाथ रहना पड़ा। जिसके बाद वह आगे की रणनीति के लिए पार्टी के नेताओं से चर्चा कर रहे हैं। हालांकि इस सीट बंटवारे से यह स्पष्ट हो गया कि कहीं ना कहीं भाजपा के लिए बिहार में चिराग पासवान ही लीड एक्टर है।
ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर चिराग पासवान पर भाजपा ने क्यों भरोसा दिखाया? जब चिराग पासवान की पार्टी का विभाजन हुआ तब भाजपा ने पशुपति पारस को मंत्री क्यों बनाया? अब भाजपा पशुपति पारस को किनारे क्यों कर रही है? आपको बता दे कि 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच दरारें पैदा हो गई थी। 2019 के चुनाव में रामविलास पार्टी के 6 सांसद जीते थे। इनमें से पांच सांसद पशुपति पारस के साथ खड़े रहे। चिराग पासवान पूरी तरीके से अलग-अलग पड़ गए थे। चुकी सांसदों की संख्या पशुपति पारस के साथ थी इसलिए भाजपा ने उन्हें ही मंत्री बनाया। लेकिन जमीनी स्तर पर चिराग पासवान ने अपनी लड़ाई जारी रखी।
संकट के समय में भी चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा ना होते हुए भी भाजपा के पक्ष में हमेशा खड़े रहे। फिर चिराग पासवान ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली जिसको अच्छा खासा समर्थन हासिल हुआ। इस यात्रा के जरिए चिराग ने यह बताने की कोशिश की कि वह ही अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीति का असली उत्तराधिकारी हैं। चिराग पासवान लगातार खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे। वह मोदी की तुलना भगवान राम से भी करते रहे। बीजेपी की किसी भी स्टैंड के साथ वह पूरी तरीके से मजबूती से खड़े रहे।
जब भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई थी तब मोदी जी जिस तरीके से चिराग पासवान को गले लगाया था उसके बाद से ही सभी को इस बात का अंदाजा होने लगा था कि कहीं ना कहीं भाजपा का स्नेह चिराग पासवान के लिए अभी भी बरकरार है। इसके बाद वह लगातार हाजीपुर सीट पर अपना दावा ठोकते रहे। हाजीपुर रामविलास पासवान की कर्मभूमि रही है। ऐसे में 2019 में पशुपति पारस वहां से चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे।
हालांकि, 2024 में चिराग हर हाल में हाजीपुर सीट अपने पास रखना चाहते थे। भाजपा ने उनकी इस मांग को स्वीकार भी कर लिया। भाजपा को भी पता है कि रामविलास पासवान का जो कोर वोट है वह पशुपति पारस नहीं बल्कि चिराग पासवान के साथ है। पशुपति पारस की तुलना में चिराग पासवान जमीन पर मेहनत करते हैं। लोगों से मिलते जुलते हैं जिसकी वजह से भाजपा का उन पर भरोसा बना है। चिराग युवा भी हैं।
लोकसभा चुनाव में टकराएंगे रिश्ते
यह भी कहा जाता है कि वह चिराग पासवान ही थे जिन्होंने रामविलास पासवान को एनडीए के साथ गठबंधन के लिए मनाया था। खुद रामविलास पासवान ने एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था। रामविलास पासवान ने कहा था कि चिराग ने राहुल गांधी को 10 बार फोन किया था सीट बंटवारे को लेकर लेकिन कोई रिस्पांस नहीं आया था। इसी के बाद हमने यूपीए छोड़ने का फैसला किया था। एनडीए के साथ जाने में चिराग की अहम भूमिका रही है।
बिहार की 6 सीटें एससी-एसटी के लिए रिजर्व हैं। इनमें हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई, गोपालगंज, सासाराम और गया की सीटें शामिल हैं। हाजीपुर, समस्तीपुर, जमुई चिराग को दी गई है।, चिराग पासवान के पास खासा वोट बैंक है। चिराग के जरिए दलितों को साधने में मदद मिलेगी। इससे अन्य सीटों पर भी भाजपा को फायदा होगा। सायद इसलिए ही चिराग से बगावत कर केंद्र सरकार में मंत्री पद तक का सफर तय करने वाले पशुपति पारस सीट शेयरिंग में खाली हाथ रह गए.
बीजेपी ने पशुपति को दरकिनार कर चिराग को तवज्जो दी तो एक मसला परसेप्शन का भी था. पशुपति पारस ने अपने और अपनी पार्टी के साथ नाइंसाफी की बात कही है. पारस की पार्टी को बीजेपी ने जहां एक भी सीट नहीं दी है तो वहीं उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के दलों के लिए एक-एक सीट छोड़ी है. बीजेपी ने इस कदम के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है,, कि पार्टी अपने छोटे से छोटे सहयोगी का भी पूरा खयाल रखती है. खैर, आपकी इसप क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ