Bharat Bandh: मोदी चले विदेश भारत बंद को लेकर बैकफुट पर बीजेपी?
Bharat Bandh: दोस्तों अनुसूचित जाति एवं जनजाति आरक्षण में क्रीमीलेयर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देशभर के विभिन्न संगठनों ने आज भारत बंद का आह्वान किया। इसका असर देश के कई राज्यों में देखने को मिला भारत बंद का सार्वजनिक परिवहन सेवाओं से लेकर ट्रेन सेवाओं पर भी असर पड़ा बिहार उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सबसे ज्यादा सेवाएं प्रभावित दिखाई दी लेकिन इस पूरे मामले में ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि बीजेपी बैकफुट पर आ चुकी है। जो पार्टी अपने आक्रमक रवैये के लिए जानी जाती है इस मुद्दे पर वो कुछ शांत दिखाई दे रही है।आखिर बीजेपी के इस मुद्दे पर चुप रहने के क्या कारण है
आज Bharat Bandh रहा
बीजेपी के बैकफुट पर होने के कई कारण है एक तो आरक्षण का मुद्दा शुरुआत से ही बीजेपी को थोड़ा चुभा है। बात चाहे बिहार के 2015 वाले विधानसभा चुनाव की हो या फिर हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव की इस आरक्षण मुद्दे को विपक्ष ने बीजेपी के खिलाफ सफलतापूर्वक भुनाने का काम किया है। अगर आंकड़ों में देखें तब भी साफ पता चलता है कि एसी-एसटी समाज में बीजेपी की उपस्थिति कुछ कमजोर पड़ गई है। 84 अनुसूचित जाति वाली आरक्षित सीटों पर इस बार बीजेपी को सिर्फ 28 सीटों पर जीत मिली वही 35 सीटों पर अन्य उम्मीदवार जीते। इसी तरह के अनुसूचित जनजाति वाली 47 सीटों में बीजेपी को सिर्फ 24 पर जीत मिल पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा काफी बेहतर था उसी वजह से तब अपने दम पर बीजेपी ने पूर्ण बहुमत भी हासिल किया था। लेकिन इस बार क्योंकि इन्हीं सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन लचर रहा फाइनल टैली में भी उसका साफ असर दिखा।
अब अपने उस प्रदर्शन को लेकर ही बीजेपी परेशान है। उसके ऊपर इस तरह का भारत बंद वाला आह्वान इस बात का अहसास दिला रहा है कि बीजेपी के लिए चुनौतियां कम नहीं और ज्यादा बढ़ने वाली हैं। दलित समाज की नाराजगी कई राज्यों तक अपना असर रखती है अगर यह पूरी तरह से बीजेपी से छिटक गया तो जमीन पर समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं। यहां पर ही बीजेपी के बैकफुट पर होने की एक दूसरी वजह भी पता चलती है। आने वाले महीनों में हरियाणा महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।
BJP क्यों हट रही है पीछे ?
इन तीनों ही राज्यों में पिछड़ों की निर्णायक आबादी है ऐसे में अगर यह समाज इस एक मुद्दे के दम पर बीजेपी के खिलाफ लामबंद हो गया चुनौतियां कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ जाएंगी। हरियाणा की बात करें तो वहां पर 17 सीटें एससी समाज के लिए आरक्षित रहती हैं। बड़ी बात यह है कि जाट के बाद राज्य में सबसे निर्णायक वोट इसी समाज का है। इस लोकसभा चुनाव में तो देखा गया हैकि इस वर्ग का मोह बीजेपी से कुछ भंग हुआ है। असल में लोकसभा के ट्रेंड को देखें तो बीजेपी इस बार 17 विधानसभा सीटों में से 13 पर पिछड़ रही थी। इसी तरह हरियाणा में ओबीसी समाज 21 फीसदी के करीब है। अब बीजेपी को इस बात का अहसास है कि यह विरोध प्रदर्शन उसे इन्हीं वोटबैंक से दूर कर सकता है ऐसे में उसका थोड़ा बैकफुट पर होना लाजिमी है।
वैसे चुनावी राज्यों में ही झारखंड की सियासत समझना भी जरूरी है। वहां भी पिछड़ा समाज ही हार-जीत तय करता है। झारखंड में ओबीसी वर्ग की आबादी 55 फीसदी चल रही है दलित 16.33 प्रतिशत और आदिवासी 28% के करीब बैठते हैं। यहां की राजनीति तो पूरी तरह ही पिछड़े समाज के इर्द-गिर्द घूमती है। ऐसे में अगर कोटा के अंदर कोटा वाले मुद्दे ने इस समाज में डर का माहौल बना दिया बीजेपी के लिए यहां भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। महाराष्ट्र की बात करें तो वहां भी 10.5 फीसदी दलित आबादी है वहां भी विदर्भ में सबसे ज्यादा 23 प्रतिशत इनकी संख्या बैठती है।
ऐसे में चुनावी राज्यों को देखते हुए भी बीजेपी इस मुद्दे पर अभी बैकफुट पर नजर आ रही है। उसकी तरफ से साफ ही नहीं किया जा रहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करना है या फिर इसके खिलाफ बोलना है। वैसे बीजेपी को लेकर तो यह भी देखा गया है कि वो पिछड़े समाज से जुड़े कई दूसरे मुद्दों पर भी असमंजस की स्थिति में चल रही है। जातिगत जनगणना का मुद्दा राहुल गांधी लगातार उठा रहे हैं बिहार में सीएम नीतीश कुमार तो इसे अपने स्तर पर करवा भी चुके लेकिन बीजेपी ने खुलकर ना इसका विरोध किया है और ना ही समर्थन। माना जा रहा है कि इस लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे का भी बीजेपी के कई राज्यों में लचर प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई।
इसके ऊपर हाल ही में लेटरल एंट्री वाले मुद्दे ने भी बता दिया कि बीजेपी अपने एससी-एसटी वोटबैंक को लेकर काफी सजग हो चुकी है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि पीएम मोदी को खुद निर्देश देना पड़ा कि अभी अधिकारियों की नियुक्ति लेटरल प्रक्रिया के जरिए नहीं होगी। माना जा रहा है कि बीजेपी का पीछे हटने का कारण ही यह था कि लेटरल भर्ती से एससी-एसटी समाज के आरक्षण पर असर पड़ सकता है। उस समाज को गलत संदेश जा सकता है ऐसे में पुरानी गलती ना दोहराते हुए पार्टी ने इससे अभी के लिए दूर रहना ही ठीक समझा। अब यह सारे वो मुद्दे हैं जो पिछड़े समाज से जुड़े हैं और इन पर बीजेपी को या तो नुकसान झेलना पड़ा है या फिर उसे ऐसा अहसास हो चुका है कि खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
ऐसे में चुनावी मौसम और आरक्षण के विपक्षी नेरेटिव ने बीजेपी को आज भारत बंद मुद्दे पर भी बैकफुट पर धकेल दिया है। अगर पार्टी इससे स्थिति से बाहर निकलना चाहती है तो उसे कई नेरेटिव ध्वस्त करने पड़ेंगे इस समाज में एक बार फिर विश्वास के दीपक को जलाना होगा। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी की सियासी गाड़ी पटरी पर लौट आएगी वरना लोकसभा चुनाव की तरह फिर इस वोटबैंक के छिटकने का डर सताने वाला है।खैर आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ