Bharat Atta: दोस्तों हमारे पीएम मोदी जी कुछ दिन पहले तक मुफ्त योजनाओं को ‘रेवड़ी बाँटना’ बता रहे थे, लेकिन बीजेपी की राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक इस मामले में किसी से पीछे नहीं है।, ग़रीबों को मुफ्त राशन की योजना के पीछे यूपीए के शासन काल में बना, भोजन गारंटी क़ानून है, लेकिन मोदीजी इसे अपनी निजी योजना की तरह पेश कर रहे हैं।
अगर पीएम मोदी ने देश की तरक्की को रफ्तार दी होती तो इस योजना के आकार में निश्चित कमी आती। यानी पहले की तुलना में अपना भोजन अपनी कमाई से न जुटा पाने वालों की तादाद घटती। लेकिन मोदी जी फिर 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने की बात कहकर खुद बता रहे हैं कि गरीब़ और ग़रीबी जस की तस है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की ताजा रैंकिंग भी इसका सबूत है। इसमें भारत को 125 देशों की सूची में 111वें नंबर पर रखा गया है।, पिछले साल 121 देशों की रैंकिंग में भारत 107वें नंबर पर था, 2021 में 101वें ,,और 2020 में 94वें नंबर पर था। मोदी जी के आगमन के समय 2014 की रिपोर्ट में भारत 76 देशों में 55वें स्थान पर था। मोदी जी के राज में भुखमरी के शिकार ,,लोगों की तादाद किस क़दर बढ़ी है ये आँकड़ा उसकी खुली गवाही है
देशभर में 27.50 रुपए प्रति किलो की कीमत पर ‘Bharat Atta’
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच केंद्र सरकार ने ‘सस्ता आटा, सस्ती दाल’ लांच कर एक नेक काम किया है। सरकार की ये जनकल्याणकारी योजना है क्योंकि देश में अब एक तरफ अडानी का फार्च्यून आटा आम जनता का खून पी रहा है ,,तो दूसरी तरफ़ अडानी की दाल। ऐसे में अडानी के कान खींचने के बजाय सरकार ने अपनी ही देशी सहकारी संस्थाओं को अडानी के मुकाबले मैदान में उतार दिया या यूं कहिये खुद मैदान में मोर्चा संभाल लिया। खुद प्रधानमंत्री मोदी जी ने ‘भारत आटे’ की ब्रांडिंग करने की उदारता दिखाई है।
केंद्र सरकार देशभर में 27.50 रुपए प्रति किलो की कीमत पर ,’भारत आटा’ उपलब्ध कराएगी। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 6 नवंबर को दिल्ली में आटे के वितरण वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसे 10 किग्रा और 30 किग्रा के पैक में उपलब्ध कराया जाएगा। दोस्तों मोदी जी देश के पहले उदार प्रधानमंत्री हैं जो चीनी पेटीएम से लेकर देशी भारत आटा बेचने तक के लिए अपनी तस्वीर के इस्तेमाल की इजाजत देते हैं। पांच किलो मुफ्त अन्न का थैला हो या कोरोना से बचाव के लिए लगाए गए टीके का प्रमाणपत्र सभी जगह छपने के लिए राजी हो जाते हैं।
इस समय सचमुच जनता महंगाई की मार से सिसक रही है। बाजार पर अडानी और अम्बानी जी का कब्जा है। ये दोनों महानुभाव आटा-दाल से लेकर हर माल पर हावी हैं और इनकी चाबी सरकार जी के पास भी नहीं है। ऐसे में जनता को राहत देने के लिए सरकार ने मोदी ब्रांड सस्ता भारत आटा और अरहर की दाल बेचने का इंतजाम कर सचमुच लोकल्याणकारी काम किया है।
सस्ते में प्याज और दाल बेच रही सरकार
सरकार देश की 80 करोड़ आबादी को पहले से मुफ्त का राशन दे रही है। अब जो शेष 60 करोड़ लोग बचे,, वे मोदी ब्रांड सस्ता भारत आटा और दाल खरीदकर अपना जीवनयापन आसानी से कर सकते हैं। भारत आटा खाने से सस्ता दूसरा क्या रास्ता हो सकता है?
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक़ देशभर में करीब 2 हजार ठिकानों पर यह मोदी ब्रांड सस्ता आटा मिलेगा। इसे नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के साथ ही नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, सफल, मदर डेयरी और अन्य सहकारी संस्थानों के माध्यम से बेचा जाएगा।
सरकार बताती है कि… मोदी ब्रांड भारत आटा बनाने के लिए ढाई लाख मीट्रिक टन गेहूं का आवंटन विभिन्न सरकारी एजेंसियों को किया गया है। उपभोक्ता मामलों के विभाग ने भी माना है कि देश में आटे की औसत कीमत 35 से 50 रुपए किलो है। गेहूं की लगातार बढ़ती कीमत की वजह से त्योहारी सीजन में आटे की कीमत में तेजी को देखते हुए सरकार ने सस्ते दाम पर आटा बेचने का फैसला किया है।
दोस्तों हमारी सरकार मॅंहगाई से जूझने के लिए आजकल सीधे बाजार में बनिया बनकर उतर आती है। पिछले दिनों जब प्याज महंगी हुई तो सरकार प्याज बेचने लगी थी। दाम बढ़ने से रोकने के बजाय खुद ही उस चीज को बेचना ज्यादा आसान काम है। और हमारी सरकार जी हमेशा आसान काम को प्राथमिकता देती है। प्याज की बढ़ी कीमतों से उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए सरकार 25 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज बेच रही है।
नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया और नेफेड 25 रुपये प्रति किलो के भाव से सस्ता प्याज पहले से ही बेच रही है। नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया 20 राज्यों के 54 शहरों में 457 खुदरा भंडारों पर कम दाम पर प्याज बेच रही है। जबकि नेफेड 21 राज्यों के 55 शहरों में 329 खुदरा भंडारों के माध्यम से घटी ड्रोन पर प्याज बेच रही है। केंद्रीय भंडार ने भी बीते शुक्रवार से दिल्ली-एनसीआर में प्याज की खुदरा बिक्री के अपने आउटलेट्स शुरू कर दिए। सरकार 60 रुपए प्रति किलो के भाव पर चने की दाल उपलब्ध करा रही है।
आपको मालूम ही है कि हमारी केंद्र सरकार सबको साथ लेकर सबका विकास करने के अलावा बेचने में सिद्धहस्त है। पिछले दस साल में देश का जितना सामान बेचने लायक था सीना ठोंक कर बेच डाला। लेकिन देश का दीवाला नहीं निकलने दिया। आखिर सरकार सरकारी सम्पदा को बेचे न तो देश की 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में पांच किलो अन्न कहाँ से दे?
नाकामियों के पहाड़ पर खड़े होकर उपलब्धियाँ गिना रहे हैं पीएम मोदी?
इसके लिए कोई अडानी, अम्बानी तो अपने खजाने खोलेंगे नहीं! अडानी-अम्बानी तो खुद व्यापारी हैं। मिलकर देश में समानांतर सरकार चलते हैं। खुद सरकार को उनके इशारे पर भरतनाट्यम करना पड़ता है। वे अपने दम पर दुनिया को मुट्ठी में कर लेते हैं। पहले भी कर लेते थे और अब भी कर रहे हैं।
वैसे, केंद्रीय चुनाव आयोग को भी सरकार की ही तरह उदारता दिखानी चाहिए और पांच राज्यों के लिए होने वाले चुनावों में मतदान के दिन मतदान केंद्रों के बाहर लगने वाले राजनीतिक दलों के बूथों पर भारत आटा बेचने की व्यवस्था करे। जनता अपना कीमती वोट सरकार को दे और लौटते समय में सस्ता आटा साथ लेकर जाए।
वैसे भी चुनाव के समय 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की योजना के विस्तार की घोषणा जब आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है तो मोदी ब्रांड भारत आटा बेचने से कौन से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन हो जाएगा? सही बात है ना
अर्थव्यवस्था की दूसरी कसौटियों पर भी प्रधानमंत्री मोदी की सरकार का प्रदर्शन दयनीय ही कहा जाएगा। विपक्ष में रहते जिस डॉलर की क़ीमत की होड़ वे कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उम्र से देखते थे वो अब 83 रुपये को पार कर गया है। हर साल दो करोड़ नौकरियों का उनका वादा सार्वजनिक चुटकुला बन गया है।
CMIE यानी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के ताज़ा आँक़ड़े बेरोज़गारी के भयावह हालात का सबूत हैं। CMIE के मुताबिक़, भारत की बेरोज़गारी दर अक्टूबर में दो साल के उच्चतम स्तर 10.09 फ़ीसदी पर पहुँच गयी है। तमाम सर्वे बताते हैं कि बेरोज़गारी की वजह से युवा नाउम्मीद हो चले हैं।
अपनी युवा आबादी को बड़ी सामाजिक पूँजी मानने वाले देश के लिए यह गंभीर स्थिति है। सीएसडीएस सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 15 से 34 वर्ष के भारतीयों के लिए बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या है जबकि 2016 में यह आँकड़ा 18 फ़ीसदी थी।,
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर पीठ ठोक कर कहते है कि भारत जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। लेकिन दोस्तों यहाँ सवाल तो लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाने का है। वरना 2013 में ही विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में,, भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित कर दिया गया था।,
चौबीस घंटे चुनाव प्रचार की मुद्रा में रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम दौर में असफलताओं के पहाड़ पर खड़े नज़र आ रहे हैं। और इस पहाड़ को विज्ञापनों से ढंका जा रहा है आपकी इस पर क्या राय है कमेन्ट कर जरूर बताएँ