Jayant Chaudhary : दोस्तों लगता है राजनीति में भी पतझड़ का मौसम आ गया है चुनावी हवा के साथ नेता पत्तों की तरफ झड़ने लगे है जी हाँ , चुनाव जो करीब है बीजेपी की चुनावी रणनीतियां लगातार चौंका रही हैं. पहले बिहार में महागठबंधन में सेंधमारी की और अब यूपी में बड़ी तोड़फोड़ की तैयारी है.जी हाँ, इंडिया गठबंधन को अब यूपी मे झटका लगने वाला है
लोकसभा चुनाव से पहले ही बिखरता दिख रहा INDIA गठबंधन को एक और झटका लगने के आसार हैं. बिहार के बाद अब यूपी में इंडिया गठबंधन को पलटी लग सकती है समाजवादी पार्टी के साथ कुछ दिन पहले चुनावी गठबंधन की घोषणा करने वाले राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के अध्यक्ष जयंत चौधरी अब भाजपा के साथ हाथ मिला सकते हैं. सूत्रों के मुताबिक, भाजपा और जयंत फाइनल डील के करीब हैं. जल्द ही इसकी औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी.
UP में जयंत की बीजेपी के साथ डील पक्की
बिहार में नीतीश कुमार ने INDIA अलायंस का साथ छोड़कर एनडीए का दामन थाम लिया है और 9वीं बार सीएम पद की शपथ ली है। अब उनके बाद यूपी में भी तस्वीर बदलती दिख रही है।, यहां अखिलेश यादव के साथ 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने पर सहमति जता चुके जयंत चौधरी भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि रालोद की भाजपा नेतृत्व के साथ बातचीत चल रही है मजेदार बात तो ये है कि सपा के साथ 7 सीटें पाने वाले जयंत चौधरी भाजपा से 5 सीटों के समझौते पर भी राजी हो सकते हैं।
दोस्तों जयंत चौधरी ने सपा के साथ कई चुनाव लड़े हैं। अखिलेश यादव के साथ उनकी अच्छी केमिस्ट्री भी दिखी थी, लेकिन अब तक कोई खास फायदा पार्टी को नहीं मिला है। ऐसे में रालोद ने आगे की संभावनाओं को देखते हुए INDIA अलायंस को छोड़कर भाजपा के ही साथ जाने की तैयारी कर ली है। सपा के ही समर्थन से मई 2022 में राज्यसभा सांसद बने जयंत चौधरी का मानना है कि यदि वे भाजपा के साथ गए तो उनकी जीत का औसत अधिक हो सकता है। सपा के साथ 7 सीटों पर लड़ने के बाद भी कितने पर जीत मिलेगी इसे लेकर रालोद में संशय की स्थिति है। इसलिए रालोद के सपा की 7 सीटें छोड़कर भाजपा के साथ जाने की डील की करने की पहली वजह यही है।
दूसरी वजह ये है कि रालोद के आगे राज्य स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी का दर्जा छिनने का भी खतरा है। यदि उसका वोट शेयर कम रहेगा तो फिर यह संकट उसके दरवाजे पर होगा। ऐसे में रालोद को लगता है कि वह भाजपा के साथ जिन सीटों पर लड़ेगी वहां उसकी जीत की संभावनाएं अधिक होंगी और वोट प्रतिशत भी ज्यादा होगा। रालोद ने 2009 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ा था और तब उसे 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। रालोद उसी मॉडल को एक बार फिर से दोहराना चाहती है।
तीसरी और सबसे बड़ी वजह पार्टी के वोटबैंक के ही बिखरने का संकट है। दरअसल रालोद को जाट मतदाताओं की पार्टी माना जाता है लेकिन 2017, 2019 और 2022 में जाट वोट बंट गए थे। इसकी वजह ये है की भाजपा को भी जाट मतदाता बड़ी संख्या में वोट करते रहे हैं। खासतौर पर तब उनका झुकाव भाजपा की ओर अधिक होता है जब रालोद के जीतने की संभावना न हो। इसलिए रालोद जाटों के एकमुश्त वोट पाने और अन्य समुदायों को भी साथ जोड़ने के लिए भाजपा के पाले में जाना चाहती है।
बीजेपी के लिए जयंत क्यों जरूरी?
दोस्तों यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी. 62 सीटें बीजेपी और 2 सीटें अपना दल (एस) को मिली थीं. इससे पहले 2014 के चुनाव में एनडीए ने 73 सीटों पर कब्जा किया था. बीजेपी को 71 और अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं. बीजेपी का प्लान है कि यूपी में पुराने रिकॉर्ड को तोड़ा जाए. क्योंकि पार्टी ने उपचुनाव में सपा के दो बड़े गढ़ आजमगढ़ और रामपुर में भी जीत का परचम लहराया है.
हाल ही में विपक्षी दलों ने इंडिया ब्लॉक का गठन किया है. इसमें सपा के साथ जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी भी हिस्सा है. आरएलडी का जाटलैंड में खासा प्रभाव है. यह बात बीजेपी भी जानती है. बीजेपी नेतृत्व पश्चिमी यूपी में जीत का कारवां और आगे बढ़ाना चाहता है और आरएलडी के समर्थन से यह प्लान आसान हो सकता है. हाईकमान भी अलायंस की संभावनाएं तलाश रहा है. यही वजह है कि बीजेपी को आरएलडी का साथ लेने में परेशानी नहीं है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी आसानी से फाइनल हो सकता है.
जयंत चौधरी का भाजपा की ओर जाने पर इंडिया एलायंस को एक और झटका लगेगा जो पहले से ही तृणमूल से विद्रोह की सुगबुगाहट के बीच जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के दलबदल से जूझ रहा है। इसी तरह आम आदमी पार्टी की स्थिति भी संदिग्ध बनी हुई है। और अब जयंत चौधरी भी गठबंधन से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश के छपरौली में एक रैली स्थगित कर दी जहां उनके दादा चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया जाना था।
कहा जा रहा है कि अगर भाजपा और आरएलडी के बीच सहमति बनती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छपरौली की प्रस्तावित रैली में,, शामिल हो सकते हैं। हाल के दिनों में चौधरी की संसद से ऐब्सेन्ट को बीजेपी के साथ हाथ मिलाने की ओर उनके झुकाव का संकेत माना जा रहा है। दोस्तों क्या जयंत चौधरी एनडीए मे मोदी बीजेपी के साथ जा सकते है क्या पलटी मार सकते है आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ