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Election 2024 : राजनीतिक सफलता की सीढ़ी , मंदिर कॉरीडोर या चुनावी कॉरीडोर !

temple corridors

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Election 2024 : दोस्तों सत्ता का धर्म और मंदिरों से बहुत पुराना कनेक्शन रहा है. हर दौर में नेता अपनी सियासी नैया को पार लगाने के लिए मंदिर का सहारा लेते रहे हैं. चुनावों में धार्मिक संवेदनाओं के तीर से ,वोटबैंक के लक्ष्य को भेदते रहे हैं. कई बार इसका फायदा भी हुआ है. शायद ये सफलता का शॉर्टकट फॉर्मूला भी बन गया है. यही वजह है आने वाले विधानसभा चुनावों ,और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए, मंदिर एक बिग फैक्टर बन गया है. केंद्र सरकार देशभर के 21 सुप्रसिद्ध मंदिरों में कॉरिडोर का निर्माण करवा रही है

लोकसभा चुनाव 2024 में ,केंद्र सरकार का यह प्रोजेक्ट्स ,भाजपा को अच्छे खासे वोट दिलाने में काफी फायदेमंद साबित होंगे ,क्योंकी मंदिरों से लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं. ,इससे ना सिर्फ लोगों को, मंदिरों का विकास नज़र आ रहा है, बल्कि इनके निर्माण से बड़े पैमाने पर ,रोजगार के अवसर तैयार हो रहे हैं. ,दोस्तों सरकार इस बात से, बहुत व्याकुल है कि, मंदिर-अर्थव्यवस्था का ,जीडीपी में योगदान अभी मात्र 2.3 प्रतिशत है, जबकि सेवा क्षेत्र का 50 प्रतिशत ,और कृषि क्षेत्र का 18 प्रतिशत है। ,यह स्थिति तब है,,जब सरकार रोज मंदिर- विमर्श में व्यस्त रहती है। हर रोज मंदिर बनवाती है, एक से एक ऊंची मूर्तियां स्थापित करवाती है, मंदिर कॉरिडोर में वृद्धि करवाने में ,जी जान से लगी रहती है,,भव्य पूजा-पाठ, भाषण, प्रसाद वितरण को उच्च प्राथमिकता देती है।

स्मार्ट टेंपल मिशन चल रहा

अभी तक चार मंदिर कारिडोर बन चुके हैं ,और भक्तगण इनका लाभ उठा रहे हैं। ,आम चुनाव से पहले इस तरह के 21 और कॉरिडोर बनेंगे, मध्य प्रदेश इसमें लीड ले रहा है, उत्तर प्रदेश को पछाड़ने में लगा है, पार्टी हाइकमान इससे बहुत खुश है। ,संघ ने भी छोटे मंदिरों के विकास के लिए ,स्मार्ट टेंपल मिशन चला रखा है।,और जैसा की हमे पता ही है राम मंदिर को अब केवल ,चुनाव की दृष्टि से शुभमुहूर्त में उद्घाटन का इंतजार है। साधु -संत कहे जाने वाले, जन तन-मन ,और विश्व हिंदू परिषद के धन से ,बहुविधि मंदिर-मोदी मिशन को अंजाम दे रहे हैं, फिर भी स्थिति दयनीय है। इसका योगदान अर्थव्यवस्था में मात्र, 328 लाख करोड़ है, जबकि इसे कम से कम 3028 लाख करोड़ तक पहुंच जाना चाहिए था।

जल्दी ही इस गंभीर स्थिति पर ,मंत्रिमंडल की दिनभर की बैठक में विचार होगा। यह इतना राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महत्व का आर्थिक, और राजनीतिक महत्व का मुद्दा है, कि इस पर बैठकें हफ्ते भर तक चल सकती हैं। हर मंत्री से जवाब-तलब होगा, कि इस मुद्दे की उसके मंत्रालय से अनदेखी क्यों की जा रही है? राज्यों के मुख्यमंत्रियों, ,सचिवों, सांसदों आदि की अलग से बैठक बुलाना भी प्रस्तावित है।

सरकार के क्षोभ का प्रमुख कारण

दोस्तों सरकार के क्षोभ का प्रमुख कारण यह है, कि वह राजनीति और अर्थव्यवस्था को ,नई दिशा देने के लिए मंदिरों को ,अर्थव्यवस्था का इंजन बनाना चाहती है। ,सरकार के चुनिंदा विशेषज्ञों का मत है ,कि मंदिरों को भारत की राजनीति के साथ ,अर्थव्यवस्था का भी केंद्र बनाकर भारत विश्व के सामने विकास का एक नया माडल पेश कर सकता है। ,यह गुजरात मॉडल के आगे का माडल है। ,आज तक दुनिया में कहीं भी, मंदिर या मस्जिद या ,चर्च को अर्थव्यवस्था का ,केंद्र बनाने की कल्पना नहीं की गई है। ,दोस्तों भारत भी अगर वास्तविक विश्व गुरु न होता, तो ऐसा महान और उत्कृष्ट माडल की कल्पना नहीं कर पाता!

दोस्तों वैसे जवाहरलाल नेहरू जैसे, प्रधानमंत्री भी हुए हैं, जो बड़े बांधों को ,आधुनिक भारत का मंदिर बताते थे। यह उनकी ऐतिहासिक भूल थी,! बांध, बांध होते हैं, मंदिर नहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि, एक नास्तिक को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाने का खामियाजा ,आज तक देश भुगत रहा है। ,अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते तो, वे ऐसी गलती नहीं होने देते। ,वे मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था की नींव रखकर ,भारत को दुनिया का समृद्धतम देश बना देते! अमेरिका को भारत पीछे धकेल रहा होता! भारत के जगद्गुरुत्व पर ,दुनिया में किसी को संदेह नहीं रहता! भारत का नाम आज भारत या इंडिया न होकर, जगद्गुरु होता! ,सरदार पटेल के इस सपने को ,आज सरकार पूरा करना चाहती है। ,पहली पंक्ति में देश को खड़ा देखना चाहती है!

दोस्तों पिछले दो वर्षों में ,सरकार का ध्यान विशेष रूप से, इस ऐतिहासिक गलती को सुधारने की तरफ गया है। ,उसने मंदिर कारीडोर बनवाकर ,मंदिरों की अर्थव्यवस्था को पुष्ट करने की दिशा में ,पहला कदम बढ़ाया है। ,आज गरीब से गरीब तीर्थयात्री के दिल में भी ,मंदिर कारीडोर के दर्शन करने के लिए ,पैसों का बलिदान करने का जज्बा पैदा हुआ है।

क्या ऐसे बनेगा भारत विश्व की नंबर वन इकानॉमी?

पिछली सरकारों ने सभी तरह के भक्तों को, मुफ्त दर्शन की लत लगा दी थी। ,लोग धर्म को मुफ्त का माल समझने लगे थे। रुपए -चार रुपए खर्च करके ,भगवान के दर्शन का अनुचित लाभ ले रहे थे ,और गर्भगृह तक भी पहुंच जाते थे। ,अब जनता की मुफ्तखोरी की यह आदत ,बड़ी हद तक रुकी है। महंगी टिकट, ,आसान प्रभु-दर्शन! अब सरकार को विश्वास हो रहा है कि ,उसे एक और मौका मिला ,तो वह मंदिर अर्थव्यवस्था को मजबूत कर ,2029 तक भारत को विश्व की नंबर वन इकानॉमी बना देगी!,सरकार को अच्छे से पता है ,की जनता को कैसे बेवकूफ बनाया जाए,,कैसे जनता का ध्यान main मुद्दों से भटकाया जाए ,धर्म ओर मंदिर पर राजनीति करना सरकार को अच्छे से आता है

एक तरफ CM योगी ज्ञानवापी विवाद को राजनीतिक हवा दे रहे हैं. वहीं दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य, बद्रीनाथ पर विवादित बयान दे रहे हैं,. इस संग्राम के बीच मंदिरों को सीढ़ी बनाकर, राजनीतिक सफलता हासिल करने की बड़ी तैयारी हो रही है,. देश में करीब 13 हजार करोड़ रुपए के 21 मंदिर कॉरिडोर का काम जारी है, और 7 राज्यों में मंदिर कॉरिडोर बनाने पर तेजी से काम हो रहे हैं,. सबसे खास बात ये है कि ,सभी कॉरिडोर का काम 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

सबसे ज्यादा 11 कॉरिडोर मध्य प्रदेश में बन रहे हैं ,और यहां पर बीजेपी और कांग्रेस में ,धर्म के रास्ते सत्ता पाने की जबरदस्त होड़ चल रही है. इसके अलावा उत्तर-प्रदेश, राजस्थान, असम, बिहार, ,महाराष्ट्र और गुजरात में कॉरिडोर पर काम हो रहा है. राजस्थान सरकार भी गोविंददेव मंदिर, तीर्थराज पुष्कर के लिए करोड़ों खर्च रही है। ,कुल मिलकर दोस्तों सभी पार्टियों को मालूम है की ,वोट बैंक कैसे बढ़ाना ,कैसे वोट बटोरणी है ,आप धर्म की राजनीति पर क्या सोचते है ,हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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